अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित
पीछे जाएं

गमलों के सोवनियर

पर्वतों के पीछे से आज फिर रिस रहा है लहू
शायद फिर हो रहा है कोई हलाल
काटा जा रहा है किसी का शीश
अभी तो रेता जा रहा होगा उसका गला
फिर, किये जाएँगे अलग उसके हाथ, फिर,धड़, पैर
फिर उखाड़ दिया जाएगा समूल
वो नहीं बन पाएँगे इतिहास
नहीं पनपेगी उनकी वंश बेल
दुनिया के नक़्शे से ग़ायब हो जाएँगे
आदिमजातियों के आदिम घर
विरासत में मिले हरियालेपन को
हमने कर दिया धूसर
उन्होंने हमें दिया भोजन और साँसें
और हमने स्वाहा कर दिया उनका जीवन
शायद तभी गढ़ी गई
होम करते हाथ जलने की परिभाषा
न, न, परिभाषा तो हमने अपने लिए गढ़ी
दरअसल, केवल उनके हाथ ही नहीं जले
वो पूरे जल गए, पूरे कट गए, पूरे मिट गए
जब खंडहर ही नहीं होंगे तो कोई कैसे जानेगा
कि इमारत कितनी बुलंद थी
वो भी हो जाएँगे ऐसे ग़ायब
जैसे ग़ायब हो रहे हैं
आदिवासी और उनके ठिकाने
 
सभ्यताओं के इतिहास में हमारी तरह
वो भी हो जाएँगे ज़मींदोज़
आजकल ज़ोरों पर हो रहा है गिरि संहार
जंगलों के घरों को किया जा रहा है समूल नष्ट
बनाए जा रहे हैं कंकरीट के महल
और महलों में तैयार हो रहे हैं
गमलों के सोवनियर

इस विशेषांक में

कहानी

कविता

गीत-नवगीत

साहित्यिक आलेख

शोध निबन्ध

आत्मकथा

उपन्यास

लघुकथा

सामाजिक आलेख

बात-चीत

अन्य विशेषांक

  1. सुषम बेदी - श्रद्धांजलि और उनका रचना संसार
  2. ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार
  3. फीजी का हिन्दी साहित्य
  4. कैनेडा का हिंदी साहित्य
पीछे जाएं