अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित
पीछे जाएं

कल्पनाभंग

अमित जी को ग्रामीण अंचल के उस विद्यालय में स्थानांतरित हुए एक सप्ताह ही हुआ था। मध्यांतर में सभी शिक्षक "स्टाफ़ रूम"एकत्रित होकर चाय पिया करते थे। आज जब सभी शिक्षक आ गए तो अमित जी बोले, "मैं बहुत दिनों से देख रहा हूँ की अंतर सिंह जी का कप हम सबसे अलग रहता है... मुझे यह उचित नहीं लगता।"

यह सुनकर कुछ शिक्षक उनसे बहस करने लगे। बात को गंभीर होता देख कर अंतर सिंह जी बोले, "अमित जी! आप मेरा पक्ष कहाँ कहाँ लेंगे? मैं शिक्षक हूँ, लेकिन कुएँ पर मुझे दूर से पानी दिया जाता है! आप ही बताइए, मैं आप लोगों के समान ऊँचे कुल में नहीं जन्मा, तो इसमें मेरा क्या दोष है..??" उनकी आवाज़ भारी हो गई।

इतने में भृत्य चाय की केतली लेकर आ गया और टेबल पर कप जमाने लगा। अंतर सिंह जी अलमारी में रखा अपना कप उठाने को तत्पर हुए।

घबराहट में उनके हाथ से कप छूट गया और उसके टुकड़े -टुकड़े हो गए। कक्ष में एक अजीब सी ख़ामोशी छा गई।

अधिकांश चेहरों पर व्यंग्य भरी मुस्कुराहट देखकर अमित जी का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। वे ज़मीन पर पड़े कप  के टुकड़ों को देखने लगे। उन्हें लग रहा था कि शहीदों द्वारा की गई स्वतंत्र भारत की कल्पना मानों चूर-चूर हो गई हो!

इस विशेषांक में

कहानी

कविता

गीत-नवगीत

साहित्यिक आलेख

शोध निबन्ध

आत्मकथा

उपन्यास

लघुकथा

सामाजिक आलेख

बात-चीत

अन्य विशेषांक

  1. सुषम बेदी - श्रद्धांजलि और उनका रचना संसार
  2. ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार
  3. फीजी का हिन्दी साहित्य
  4. कैनेडा का हिंदी साहित्य
पीछे जाएं