अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित
पीछे जाएं

क्या हम मनुष्य नहीं हो सकते?

मेरा रंग रूप
नैन नक़्श 
बल, बुद्धि और प्रकृति 
थोड़ी बहुत भिन्न हो सकते हैं 
परन्तु फिर भी मैं हूँ
तुम्हारे जैसा
यहाँ तक कि दुनिया में
तुम्हारी ही तरह
आता और जाता हूँ
फिर कैसे 
मैं हिन्दू
तुम मुसलमां
मैं सिक्ख और
तुम ईसाई?
 
मेरे जैसे होने के बाद भी
तुमने नहीं छोड़ा मेरे लिए 
कुछ भी
समस्त संसाधनों पर 
करके अपना अधिकार
आज तुम पूँजीपति
और मैं निर्धन
मेरे हिस्से को खाकर
मेरे ऊपर ही अत्याचार करते हुए
क्या तुम्हें थोड़ी भी शर्म नहीं आती?
 
तुम्हारे जैसा ही रक्त 
बह रहा है मेरी धमनियों में
फिर भी 
घोषित कर रखा है देवता
तुमने अपने आपको
और मुझमें तुम्हें मानव भी
दिखता नहीं
एक ख़ून सनी योनि से
बाहर आकर भी
तुम कैसे सर्वश्रेष्ठ
और मैं नीच
तुम ब्राह्मण देवता
और मैं दलित-शूद्र?
 
मैं जन्म देती हूँ तुम्हें
फिर भी तुम्हारे समकक्ष नहीं
कभी नहीं देते तुम मुझे 
पूर्ण अधिकार
कब तक संतुष्ट करते रहोगे
अपने पुरुषवादी अहम् को
और मानते रहोगे मुझे 
अपना आधा अंग ही
 
रंग-रूप, धर्म-जाति, 
धनी और निर्धन
स्त्री और पुरुष का भेद मिटाकर
क्या हम मनुष्य नहीं हो सकते?
 

इस विशेषांक में

कहानी

कविता

गीत-नवगीत

साहित्यिक आलेख

शोध निबन्ध

आत्मकथा

उपन्यास

लघुकथा

सामाजिक आलेख

बात-चीत

अन्य विशेषांक

  1. सुषम बेदी - श्रद्धांजलि और उनका रचना संसार
  2. ब्रिटेन के प्रसिद्ध लेखक तेजेन्द्र शर्मा का रचना संसार
  3. फीजी का हिन्दी साहित्य
  4. कैनेडा का हिंदी साहित्य
पीछे जाएं