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मित्रो – तेजेन्द्र शर्मा का लेखन हिंदी की थाती है - प्रो. राम बख़्श

आज से क़रीब दस ग्यारह वर्ष पहले आदरणीय ज़किया ज़ुबैरी जी की संस्था एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने मेरी 19 कहानियों की एक ऑडियो सीडी बनवायी थी। इस सी.डी. में मेरी कहानियों का पाठ किया टीवी एवं मंच कलाकार शैलेन्द्र गौड़ एवं रेडियो कलाकार प्रीति गौड़ ने। इस सीडी की भूमिका लिखी थी मरहूम जगदम्बा प्रसाद दीक्षित जी ने। 

मेरे प्रिय मित्र एवं प्रो. राम बख़्श इन दिनों वाशिंगटन अमरीका में हैं। वहाँ अपने पौत्र के साथ रिटायर्ड जीवन का आनन्द उठा रहे हैं। मैंने उन्हें अपनी ऑडियो कहनियों का लिंक भेज दिया और वहाँ 5 मार्च से उन्होंने लगातार मेरी कहानियों को पढ़ना शुरू किया और छोटी/लम्बी प्रतिक्रियाएँ भेजना शुरू कर दिया। जैसे ही एक कहानी पढ़ते पाँच सात पंक्तियाँ फ़ेसबुक मैसेंजर पर टिप्पणी भेज देते। It is a very satisfying experience for any writer when such a senior Professor of Hindi literature finds time to read, brood over and write about the writer’s creations.

उनकी टिप्पणियों को आपके साथ साझा कर रहा हूँ –

पासपोर्ट का रंगः

“आज पासपोर्ट का रंग कहानी सुनी। बहुत ख़ूबसूरत कहानी है। मुझे लगा कि नायक अनिर्णय में ब्रिटिश पासपोर्ट के साथ ज़िंदा रहेगा। कहानी का तर्क इस दिशा में जा रहा था। बहुत सुंदर कहानी। एक नए पात्र से मिलना हुआ। ”

मलबे की मालकिनः

"मलबे की मालकिन स्त्री की पीड़ा को व्यक्त करने वाली सशक्त कहानी है। कहानी में कई उतार चढ़ाव हैं। घुमावदार गलियाँ हैं। नायिका एक संवेदनशील आधुनिक स्त्री है। संवेदनशील होने के कारण उसका दर्द है। इसमें मुझे एक समस्या लगी। यह स्त्री यादव नहीं हो सकती। यादव बनाते ही कहानी अपनी विश्वसनीयता खो देती है। मध्यवर्ग के शिक्षित परिवार के कपड़े पहनाते ही कहानी जीवंत हो जाती है। जहाँ पहली लड़की होते ही समस्या हो जाती है। यादवों की संवेदन हीनता तो हो सकती है, परंतु उस घर में यह नायिका नहीं हो सकती। कहानी के अंत में थोड़ी सी दिक़्क़त लगी। वह लड़का रोमांस तो माँ जैसी किसी स्त्री से कर सकता है, लेकिन विवाह? थोड़ा मुश्किल है। यदि प्रेम प्रस्ताव तक इस प्रकरण को रखते तो शायद बेहतर होता। ऐसे ही पढ़ते पढ़ते मन में बातें आ गयी, जो सोचा आपके साथ साझा करूं। बाक़ी आपकी भाषा और कहानी का ढाँचा तो आपका बेहतरीन होता ही है। "

ढिबरी टाईटः

"हाँ तो आज ‘ढिबरी टाइट’ कहानी सुनी। बाक़ी तो ठीक है, बस एक बात है। कहानी में एक नया मौलिक चरित्र है, जिसे आपने क़ुवैत युद्ध के प्रकरण में डाल दिया। प्रवासी की पीड़ा का एक नया रूप। "

अपराध बोध का प्रेत!:

‘अपराध बोध का प्रेत’। बहुत मार्मिक। निःशब्द। अपने में पूर्ण रचना। पूरी तटस्थता के साथ संवेदनशील गठन। 

पापा की सज़ाः

‘पापा की सज़ा’ - इस कहानी पर क्या बात करूँ? नए ढंग के पात्र और उनकी मौलिक परिस्थितियाँ। इनसे एक अद्भुत कहानी बन सकती थी। परंतु हर घटना घटने से पहले पाठक समझ जाता कि पापा हत्या कर देंगे। बेटी का व्यवहार! चूँकि पहले से पाठक पहले से तैयार रहता है, इसलिये उस पर वह कलात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, जो कहानी का उद्देश्य है। जो यदि पड़ जाता तो अद्भुत रचना होती। कोई बात नहीं, अच्छे लेखक की असफल रचना भी किसी सामान्य लेखक की सर्वश्रेष्ठ रचना से बेहतर तो होती ही है। ऐसी कहानी अपनी संभावनाओं के सामने असफल है। ऐसा मुझे लगता है। 

ईंटों का जंगलः

‘ईंटों का जंगल’ यथार्थवादी कहानी है। जिन लोगों ने इसे भुगता है, वे बहुत आसानी से इस कहानीसे जुड़ सकते हैं। बारीक निरीक्षण। भाषा और कथन शैली प्रभावशाली।

काला सागरः

‘काला सागर’ अत्यन्त प्रभावशाली। अंग्रेजी में कहना हो तो picture perfect इतने सहज और प्रभावशाली तरीके से आपने भावनात्मक पीड़ा और क्षुद्रता का वर्णन किया है। आवेग रहित अभिव्यक्ति। बहुत सुंदर। सचमुच की रचना। 

कोख का किरायाः

‘कोख का किराया’ - पहली बात तो यह कि आप कहानी की शुरुआत बहुत सुंदर करते हैं। शुरू होते ही पात्र को जीवंत कर देते हैं। फिर धीरे धीरे कहानी के प्रमुख पात्र को प्रस्तुत करते हैं और तब कहानी आगे बढती है। यह कला अब तक पढ़ी गयी लगभग सभी कहानियों में है। इसके कारण पाठक कहानी से जुड़ता जाता है। इसके बाद जब कहानी शुरू होती है तो पाठक लेखक की गिरफ्त में होता है। अब यह कहानी। एकदम नया पात्र। कम से कम मेरे लिए। फिर उसकी समस्याओं को आपने फुरसत से और विस्तार से निर्मित किया। कहानी की अंतिम दो पंक्तियाँ हटा दें तो भी चलेगा। अत्यंत कलात्मक और समर्थ कहानी। बीच में आये हुए जीवन ज्ञान से भरी हुई पंक्तियाँ बेहद सार्थक समझ से भरी हुई। इसकी कुछ पंक्तियों को कोई racial कह सकता है। 

पाँच कहानियाँ और...

अब तक मैं पाँच और कहानियाँ सुन चुका हूँ। ‘बेघर आँखें’ मुम्बई के मकान की समस्या है। इससे मिलती जुलती कहानी पहले भी पढ़ चुके हैं। 

‘अभिशप्त’ ऐसी कहानी है जो मैं प्रवासी लेखक से सुनना चाहता हूँ। भारतीय मानस की जड़ मान्यताओं को तोड़ने वाली। इसमें आई हुई समस्या के कारण नहीं, हालाँकि वे भी महत्वपूर्ण है, इसके पात्र, मनुष्य के रूपमें उनकी उपस्थिति प्रभाव शाली है। वैसे यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि पात्रों का चयन आपका बहुत प्रभावशाली है।

‘एक ही रंग’ ने मुझे ज़्यादा प्रभावित नहीं किया। 

‘मुझे मुक्ति दो’ भी समर्थ कहानी है। परंतु हिंदी में यह कहानी कही जा चुकी है। मुझे आपकी कहानियों का वह संसार पसंद आ रहा है, जिसका वर्णन हिंदी में अब तक नहीं हुआ है। अर्थात नया और मौलिक जीवन। 

‘चरमराहट’ - मुझे बहुत पसंद आई। भारत भूमि के लोग जो कुछ करते हैं, उनके कर्म प्रवासियों को कितना प्रभावित करते हैं, इस दृष्टि से तो यहाँ कोई सोचता ही नहीं। आसपास के लोग जो कुछ करते हैं, वे तो करेंगे ही, लेकिन आप उन्हें मौका क्यों देते हो। कहानी सुनने की विधा तो है, परंतु सुनने में बहुत कुछ छूट भी जाता है। अतः कहना चाहता हूँ कि आपकी कहानियाँ पाठ्य कहानियाँ है, बहुत सी बातों के लिए इन्हें फिर-फिर पढ़ने की ज़रूरत है। अगली कहानियाँ पढ़ कर फिर अपनी पाठकीय प्रतिक्रिया भेजूँगा।

भंवरः

‘भंवर’ एकदम सम्पूर्ण कहानी है। कोई किंतु परन्तु नहीं है। पात्र नए, उनका रिश्ता नया, उनकी समस्या नई। वह समस्या भी नई जो आई नहीं है। आने वाली है। आ भी सकती है। निपटने का कोई रास्ता दिख नहीं रहा है। भरत, रमा, और भरत की पत्नी, सब नए। कोई खल पात्र नहीं। तब भी खल कर्म तो हुआ। बैचेनी तो असली है। भरत खल पात्र होता तो बैचेन क्यों होता। मुस्कराते हुए निकल जाता। ज़्यादा विस्तार में न जाकर संक्षेप में यह कि इस कहानी की पढ़ा जाना चाहिए। 

तीन और कहानियाँ:

आज बाक़ी बची सारे कहानियाँ पढ़ लीं। ‘श्वेत श्याम ’, ‘गंदगी का बक्सा’ और ‘मुझे मार डाल बेटा’ यथार्थवादी ढंग की कहानियाँ हैं। उसमें जीवन की कुछ कड़वी सच्चाइयाँ है। ये पाठकों का अनुभव समृद्ध करती हैं, परन्तु मुझे कहानी से अपने अनुभव का विस्तार नहीं चाहिए। अलग तरह के पाठकों को ये अच्छी लग सकती है। यह मेरी अभिरुचि का मामला है। 

आज मुझे थोड़ा विस्तार ‘सिलवटें’ कहानी पर बात करनी है। 

इस कहानी की परिकल्पना बहुत अद्भुत है। नायक नायिका को बहुत पसंद करता है। परंतु उसका व्यक्तित्व नायिका से कमज़ोर है। अतः सामान्य प्रेम प्रस्ताव से उसे नायिका मिलने वाली नहीं है। अतः वह योजना बनाकर अँधेरे में उसका बलात्कार करता है। इससे उसे गर्भ रह जाता है। फिर वह बलात्कारी प्रेमी उससे विवाह करता है। उनके बेटा होता है। नायिका उस बलात्कारी अज्ञात व्यक्ति से घृणा करती रहती है। उसे भूलती नहीं। कहानी के अंत में नायक यह स्वीकार करता है कि बलात्कार उसी ने किया था। नायिका बेटे की शक्ल से यह मानती है कि उसका पति ही उसका बलात्कारी है। अब उसका आरोप यह है कि इतने दिनों तक पति ने इस सत्य को स्वीकार क्यों नहीं किया? यह कहानी की कहानी है। अब इसका विखंडन करते हैं। इस विखंडन से कहानी की पुनर्रचना करते हैं। यदि ऐसा मान लिया जाय कि सुहाग रात को ही नायिका को पता चल जाता है कि उसका पति ही उसका बलात्कारी है। तब? कहानी कैसे बढ़ती। नायक के पसीने की गंध से उसको एहसास हो जाता है। या उसके काम संबंधों के तरीक़े से वह जान सकती है। शरीर के ढाँचे से वह जान सकती है। फिर उसकी बलात्कारी को खोजने की निष्क्रियता से उसको विश्वास हो जाता है और तब बेटे के नाक नक्श उसके पति से ही मिल रहे हैं। तब क्या कहानी अधिक प्रभावशाली नहीं होती? फिर नायक का अंतर्द्वंद्व? अपनी प्रेमिका के प्रति प्रेम? उसकी पीड़ा में सहभागिता? उसके मन की हलचल? अर्थात इस कहानी के भीतर कितनी कहानी छुपी हुई है। कई बार रचना के भीतर छुपी हुई यह सम्भावना भी रचना के सामर्थ्य की सूचक नहीं हो सकती? मुझे तो लगता है। जो भी है इन कहानियों के माध्यम से तेजेन्द्र शर्मा को जानना एक सुखद अनुभव है। 

उपसंहार अति संक्षेप में -

1. तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों का फलक आमतौर से बहुत व्यापक होता है। लगभग उपन्यास की तरह। ऐसा फलक तैयार करने के लिए लेखक का जीवन अनुभव व्यापक होना चाहिए। जो इन कहानियों में है। 

2. तेजेन्द्र शर्मा अपनी कहानियों में कई तरह के मनुष्यों से परिचित करवाते हैं। मुझे यह बात सबसे अच्छी लगती है। मुझे बातों में, विचारों में उतनी रुचि नहीं रहती, जितनी मनुष्यों में रहती है। 

3. उनकी भाषा बहुत सधी हुई और गंभीर है, जो जटिल जीवन को व्यक्त करने में सक्षम है। 

4. फिर कहानी कहने का ढंग बहुत आत्मीय है। 

5. सबसे बड़ी बात। वे Global World को हिंदी पस्तकों के सामने खोलते हैं। यदि आप यूरोप अमेरिका जाना चाहते हैं, उनको समझना चाहते हैं तो आप उनको पढ़क़र जाएँ तो किसी भरम में नहीं रहेंगे। मैंने उनको ठीक से इसी बार जाना। और मुझे अच्छा लगा। उनका लेखन हिंदी की थाती है। 

मित्रो प्रो. राम बख़्श ने अभी कहानियों को ऑडियो सीडी पर केवल सुना है। उनका मानना है कि मैं उन्हें अपनी पुस्तक उपलब्ध करवा दूँ तो वे कहानियाँ पढ़ कर बेहतर प्रतिक्रिया लिख पाएँगे। 

यदि आप भी इन कहानियों को ऑनलाइन सुनना चाहें तो लिंक नीचे दे रहा हूं, क्लिक करिये और पढ़िये मेरी 19 कहानियाँ:

रचनाकार | तेजेन्द्र शर्मा की 19 कहानियाँ – एमपी 3 ऑडियो बुक फ़ॉर्मेट में

 

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