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रचनाकार और उसकी रचनाधर्मिता

हिन्दी भाषा साहित्य में कथाकार श्री तेजेन्द्र शर्मा की पहचान विश्व-व्यापी है। उनकी जीवन-यात्रा के समान ही कहानियों की यात्रा ने "जितनी ज़मीं उन्हें मिली, उतना आसमां छुआ है”। वैसे तो गीत लिखे जायें, कविता, या कहानी लेखक की संवेदनाओं की झलक उनमें व्याप्त होती है। 

लेखक को एक व्यक्ति की भूमिका में देखने का अवसर मुझे वर्ष 2018 में मिला जब मैं पारिवारिक यात्रा पर लंदन (यू.के.) गई। मैंने तेजेन्द्र जी के दो कहानी संग्रह, ग़ौरतलब कहानियाँ और बेघर आँखें, भारत में पढ़े थे। लंदन के नेहरू सेन्टर में एक साहित्यिक सम्मेलन में आदरणीय से भेंट हुई। वे अपने किरदार में भी उतने ही सच्चे दिखे जितना वो अपने लेखन में होते हैं। किसी प्रतिष्ठित साहित्यकार से जिस तरह मिलते हैं वैसे ही एक नये उभरते हुए रचनाकार के प्रति आदर/स्नेह भाव रखते हैं। तेजेन्द्र जी ने मुझे कथा यू.के. के एक आयोजन में रचना पाठ हेतु आमंत्रित किया वहाँ अन्य प्रवासी रचनाकारों से मेरी भेंट भी करवाई। 

कार्यक्रम का संचालन, रिर्पोटिंग, तस्वीर लेना, चाय-नाश्ते का ध्यान रखना सबकुछ तल्लीनता से करता देख मुझे लगा ही नहीं कि दुनिया के चर्चित चेहरे के सामने मैं गीत पढ़ रही हूँ। मैंने जाना कि वे विचारवान और विवेकवान दोनों प्रतिभाओं के धनी हैं, और यही कारण उनके निरन्तर परिष्कृत होने का है। व्यक्तिगत जीवन आडम्बर रहित है, मध्यरात्रि को जागना, ब्रिटिश रेल (लंदन ओवर ग्राउंड) की ड्यूटी पर जाना दोपहर तक हज़ारों यात्रियों को गंतव्य तक पहुँचाने का सुकून पाना फिर एकाकी अपने दैनिक जीवन के कार्यों को करते हुए लेखन करना।

जब लेखक की दृष्टि में इन्द्रिय बोध, सौन्दर्य बोध और भावबोध का समावेश होता है तो उसकी दृष्टि विश्व-व्यापी हो जाती है। यही कारण है कि श्री तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों पर दुनिया में बात होती है।

लेखक का जन्म 21 अक्टूबर 1952 (जगरांव पंजाब) में हुआ। दिल्ली वि.वि. से उच्चशिक्षा प्राप्त करने के बाद इंडियन एयर लाइन में सर्विस करते हुए उनका विवाह इंदु शर्मा जी से हुआ; वे बेहद गुणी और सुन्दर थीं। तेजेन्द्र जी अपने लेखन की प्रेरणा उन्हें मानते हैं। उनकी मृत्यु पश्चात मुंबई में स्वयं को एकाग्र नहीं कर सके और बच्चों के साथ लंदन (यू.के.) में बसने का विचार किया। भारत में रहते हुए तेजेन्द्र जी ने प्रतिबिम्ब कहानी से लेखन आरंभ करते हुए लगभग 17 कहानियाँ लिखीं, जो ‘ग़ौरतलब कहानियाँ संग्रह’ में संगृहित हैं। भारत में लिखी गई कहानियों पर यहाँ की सभ्यता संस्कृति, और बदलते हुए परिवेश तथा परिवर्तित होते मानव मूल्यों का असर दिखता है। श्री तेजेन्द्र शर्मा जी का दूसरा कहानी संग्रह ‘बेघर आँखें’ उन्होंने अपनी पत्नी इंदु शर्मा की स्मृति को समर्पित किया। इसमें लगभग 12 कहानियों का संकलन किया गया है, इस संग्रह में नये ढंग से जीवन सौन्दर्य को अभिव्यक्त किया गया है। लंदन में उन्होंने महसूस किया कि हिन्दी का माहौल कविता और कवि सम्मेलनों तक सीमित था। साहित्य सृजन कम, उत्सवधर्मिता अधिक थी, तब उन्होंने ब्रिटेनवासी साहित्यकारों की कहानियों का संकलन प्रकाशित किया। कथा यू.के. की स्थापना की। काउन्सलर आदरणीय ज़किया ज़ुबेरी जी के व्यक्तित्व का प्रभाव होने से तेजेन्द्र जी पर कुछ कहानियों में मुस्लिम पात्रों का समावेश हुआ, क्योंकि उनके साथ की गई चर्चाओं से लेखक को मुस्लिम सम्प्रदाय की सामाजिक परिस्थितियों का बोध हुआ। लेखक का स्वःकथन है कि - "मैं विषय पर ध्यान देता हूँ। जब तक लिखने को कुछ नया न हो कहानी लिखना शुरू नहीं करता।” वे मानते हैं कि उनका पूरा व्यक्तित्व और चिंतन ‘एयर इंडिया’ की नौकरी की देन है। श्री तेजेन्द्र शर्मा जी का एक कविता/ग़ज़ल संग्रह भी है। अच्छी रचनाओं से वे हमेशा प्रभावित रहे हैं, गीतकार शैलेन्द्र के गीतों पर उन्होंने गंभीरता से अध्ययन किया है वे स्वयं मानवीय संवेदनाओं में यथार्थ को प्रतिबिम्बित करने के पक्षधर हैं। तेजेन्द्र जी पिछले बीस वर्षों से ब्रिटेन की संसद में अन्तर्राष्ट्रीय ‘इंदु शर्मा कथा सम्मान’ का आयोजन कर रहे हैं।

भारत में ही नहीं उन्हें विश्व में कई पुरस्कारों/सम्मानों से नवाज़ा गया है।

ब्रिटेन की महारानी ‘ऐजिलाबेथ द्वितीय’ द्वारा एम.बी.ई (मेम्बर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर) की उपाधि 2017 में उन्हें प्रदान की गई; यह ब्रिटेन का यह एक ‘उत्कृष्ट’ सम्मान है। सम्मान को मिलने के पश्चात श्री तेजेन्द्र जी ने वहाँ के मीडिया से इंटरव्यू देते समय कहा कि वे भाषा के माध्यम से दो देशों के मध्य सेतु का निर्माण कर रहे हैं; जिससे दो राष्ट्रों की संस्कृतियों और सभ्यताओं का आवागमन प्रारंभ होता है।

श्री तेजेन्द्र शर्मा जी ने ’मौत एक मध्यान्तर’ कहानी संग्रह और ’नयी ज़मीन नया आकाश’ ब्रिटेन में रहते हुए ही लिखे। नयी ज़मीन नया आकाश में पूर्व संग्रहों की चचिर्त कहानियों की पुनरावृत्ति है।

लेखक ने यदि जीवन को उमंग, उत्साह के साथ जिया है तो मौत को भी क़रीब से अनुभव किया। वे जीवन के इस सत्य से विचलित नहीं है। मृत्यु पर लिखी गई कहानियों का संकलन 2019 में "मृत्यु के इन्द्रधनुष” में समाहित है। आपकी कई कहानियों पर भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में छात्रों द्वारा शोध-कार्य किया जा रहा है।

लेखक की रचनाधर्मिता-

लेखक श्री तेजेन्द्र शर्मा जी पर बात करने के बाद यदि उनके रचना संसार पर राय दी जाये तो अनेक प्रश्न दिमाग़ में उठते हैं- यथा- कहानियाँ हमें चेतनात्मक ऊर्जा से भर देती हैं। हम अपने समय के संघर्षों को जी रहे होते हैं या कभी अवसाद के क्षणों की अनुभूति कर रहे होते हैं तो तेजेन्द्र जी को पढ़कर मरती इच्छाओं में भी सुगबुगाहट महसूस कर सकते हैं।

कभी लगता है लेखक हमें राग से वैराग्य की ओर ले जा रहा है।

कभी हम सोचते हैं लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की तरफ़ जा रहे हैं।

कभी स्त्री-पुरुष प्रेम की उद्दातता परिलक्षित होती है।

उर्दू साहित्य में कहा गया है -

"इश्क़ मिज़ाजी इश्क हक़ीक़ी”

लेखक और उसका लेखन एक दूसरे के पर्याय से प्रतीत होने लगते हैं, समस्त कहानियों को पढ़कर मैंने महसूस किया।

"कारगह-ए-शीशागरी"- 

गोया कहानीकार काँच बनाने की कार्यशाला में खड़ा है काँच को बनते, टूटते, पिघलते देख रहा है और वहीं काँच से निर्मित सामानों को बनते हुए देखने का स्वप्न भी। हाथों में ज़ख़्म और आँखों में चुभन भी महसूस कर रहा है।

भँवर-कहानी में तीन पात्रों के बीच विचार प्रवाहों का भँवर निर्मित किया है नायक, ‘भरत’ विदेशों के विलासी जीवन और उच्च जीवन स्तर जीने की चाह रखता है।

"ब्राह्मण का बेटा और जमादार का काम। सारा ग्लेमर टॉयलेट सीट के नीचे बह गया"। विदेश जाने की ख़ुशी ने जैसे सब कुछ भुला दिया। (कहानी से)

रमा स्त्री पात्र माँ बन पाने के सुख से वंचित, पूर्व परिचित मित्र भरत का उसके जीवन में आना और रमा की वांछित इच्छाओं की पूर्ति का होना। यहाँ लेखक थोड़े फ़िल्मी कथाकार से लगते हैं। 

धुंधली सुबह-

प्रेमी और प्रेमिका के बीच सतरंगी कल्पनाओं की कहानी है। यथार्थ का समावेश होने पर लड़खड़ाती ज़िंदगी की अभिव्यक्ति है। 

ईंटों का जंगल-

ये कहानी लेखक के जीवन अनुभव से जुड़ी हुई है। मुंबई जैसे महानगरों में एक मध्यम वर्ग के व्यक्ति के लिये एक छोटा सा घर खरीदने का स्वप्न किस तरह टूटता है। भूमाफ़ियाओं की अवसरवादिता की गिरफ़्त में पिसता आम आदमी, चारों तरफ़ ईंटें हैं, पर घर के दुःख में टूट रहा है।

मलबे की मालकिन-

"एक ग़रीब परिवार की बेटी ग़रीब पिता के घर भी ग़रीब थी और अमीर ससुराल में भी ग़रीब"। (कहानी से उद्धृत) लेखक ने उन लड़कियों की व्यथा बयान की है जो सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी आर्थिक सम्पन्नता न होने के कारण तरह-तरह के दुःखों को भोगती हैं।

कहानी सुखांत की तरफ़ अंत होने जा रही है पर तेजेन्द्र जी की अन्य कहानियों जैसी कशमकश पर समाप्त होती है। 

कोख का किराया-

कहानी एक स्त्री के सेरोगेटमदर बनने की भूल से आरंभ होकर गुनाह में बदलती हुई नज़र आती है। परिवार की सहमति के बग़ैर किसी काम को अंजाम देने के दुःख कहानी की पात्र… को उठाने पड़ते हैं अंजाम भी इस तरह से होता है "न ख़ुदा ही मिले न विसाले सनम"

कैलिप्सो-

श्री तेजेन्द्र शर्मा की कुछ कहानियाँ उनके द्वारा ‘हवाई यात्रा’ में ढूँढ़ी गईं, और कुछ कहानियों ने उन्हें ‘लंदन रेल्वे’ में ढूँढ़ लिया। कहानी का नायक ‘नरेन’ सेन्ट्रल अन्डर ग्राउंडस्टेशन के बाहर क्वींस रोड के बस स्टाप के पीछे एक महिला को उसी मार्ग से गुज़रते हुए रोज़ बैठा देखता है। नरेन ने उस अंजान का नाम कैलिप्सो रख लिया (एटलस की बेटी/ग्रीक भाषा में अर्थ वह जो कुछ छिपाये)। कैलिप्सो अगर समुद्र की देवी थी तो ‘नरेन’ की कैलिप्सो रेल्वे की देवी कही जा सकती है। ‘नरेन’ के ज़ेहन में वे सभी लड़कियाँ घूमने लगीं जो यहाँ, वहाँ बैठी पाई जाती हैं। जिस तरह से समुद्र की तरंगों में सब अदृष्य हो जाता है, कैलिप्सो भी जीवन तरंगों में अदृष्य हो गई। कहानी का क्लाइमैक्स पर अंत होना ही लेखक की ख़ूबी है।

एक छोटी कहानी-

मुझे यह कहानी तो कहानियों की नानी लगी, जिसमें लेखक से किसी पत्रिका प्रकाशक ने पन्द्रह सौ शब्दों में कहानी लिखने को कहा। "क्या हमें अपने साहित्य को मनमानी इच्छाओं के हिसाब से तय करना होगा"? और लेखक सोच में पड़ गया कि राजनीति पर लिखूँ कि घोटालों पर कि प्रेम पर कि न्याय व्यवस्था पर कि रंगभेद और अन्ततः कहानी लिखने का चिन्तन ही कहानी हो गई।

तरकीब-

कहानी में अदनान और सकीना के आपसी झगड़ों के कारण पति द्वारा तलाक़ की बात सोचना और तलाक़ में संपत्ति का हिस्सा नहीं देने की सभी तरकीबों पर विचार किया जाना ही कथानक है। कहानी का अंत ऐसे मोड़ पर है कि पाठक सोचे आगे क्या हुआ क्या होना चाहिए आदि।

बेतरतीब ज़िंदगी-

इस कहानी ने मुझे दरबारी कवियों की याद दिला दी। परन्तु उस काल में वे भी साहित्य के माध्यम से राजा को उसकी प्रशंसा के अलावा देश की स्थिति से आगाह करते थे। वीर रस की कविताओं के माध्यम से उत्साहवर्धन करते थे, तभी उनका सम्मान भी होता था, पर वर्तमान में साहित्य एक व्यापार नज़र आ रहा है। जिनके पास सत्ता, शक्ति और धन है उनकी नज़रों में कला या साहित्य का कोई सम्मान नहीं। वे उसे अपनी कीर्ति और आनंद के लिए ख़रीदी गई वस्तु मानते हैं। मुझे इस कहानी ने बेहद प्रभावित किया। मेरी संवेदनाओं को अंतर से झकझोर दिया।

फ्रेम से बाहर-

एक स्त्री मन की कोमलता कब, कैसे, ख़त्म हो जाती है इस विषय-वस्तु पर लिखी गई अलग तरह की कहानी है। नेहा के आत्मनिर्भर, एकाकी, परिवार से अलग-थलग हो जाने की पीड़ा अपने दो जुड़वाँ भाइयों के जन्म के बाद माता[पिता द्वारा घर से दूर हॉस्टल में (छात्रावास) भेज दिये जाने पर वह अपने निर्णय लेने में सक्षम हो गई है। उसके मन में, प्रेम, आत्मीयता, बच्चों से लगाव का कोई स्थान नहीं है। समय ने उसे बदल दिया है, और वह परिवार के अन्य सदस्यों की तस्वीर में ख़ुद को फ्रेम से बाहर हो जाना महससू करती है और परिवार के प्रति भावना विहीन हो जाती है।

होमलेस-

संवाद शैली में कही गई कहानी की प्रमुख पात्र ‘बाजी’ ‘नफीसा’ काउन्सलर है। सामाजिक संवेदनाओं और कार्यों के लिये उनकी शहर में पहचान है। एक अमीर और साधन सम्पन्न पति की पत्नी मात्र बनकर वे नहीं रहना चाहतीं। भारत में जन्मीं, पाकिस्तान में शादी हुई और लंदन में निवास करती हैं। धर्म से मुस्लिम पर कर्म से हिन्दू हैं; उन्हें गुरुद्वारा, मंदिर, चर्च में जाने से परहेज़ नहीं। बस वे अपने आसपास समाज में आर्थिक संतुलन की पक्षधर प्रतीत होती हैं, बेघर बेसहारा, लोगों की सहायता करना बाज़ी की ज़िंदगी का मक़्सद है।

क़ब्र का मुनाफ़ा-

शीर्षक ही चौंका देने वाला है, भारतीय चिन्तन से तो परे है प्रमुख पात्र ख़लील और नज़म जो विदेश मात्र धन कमाने के मक़्सद से आये हैं और इसी मक़्सद से वे लंदन के पॉश ऐरिया में क़ब्र की बुकिंग करके मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं। व्यंग्यात्मक शैली में कही गई - "इंसां की ख़्वाहिशों का कोई अंत नहीं है वह मृत्यु के बाद भी आलीशान क़ब्र में दफ़्न होना चाहता है।" जीवन के अंतिम क्षणों तक धन की लालसा इस कहानी में अभिव्यक्त होती है।

आदरणीय तेजेन्द्र शर्मा जी की कहानियों एवं व्यक्तित्व का अध्ययन करते हुए मुझे एक शेर याद हो आया -

"यही अन्दाज़ है मिरा समन्दर फ़तह करने का,
मिरी काग़ज़ की कश्ती में कई जुग्नू भी होते हैं" - ‘डॉ. बशीर बद्र’

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