अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

आ मानवता धारण कर लें

कौन है अपना कौन पराया 
व्यर्थ का मत कर यह प्रलाप 
आ मानवता धारण कर लें
हम हर इक-दूजे के संताप
चल मानवता धारण कर लें . . .
 
निश्चित पतन हुआ है मानो
मानव के संस्कारों में
अपना पराया ढूँढ़ रहे हम
लाशों के अम्बारों में
बहुत ख़ूब एहसास हो गया 
कितने समझदार हैं आप
चल मानवता धारण कर लें . . .
 
इधर उधर की बातें न कर
कब तक सच झुठलाओगे 
है आज यह कल वह सही 
चले तुम भी इक दिन जाओगे
राजनीति कुछ पल तो छोड़ो
क्या अपनी डफली अपना राग 
चल मानवता धारण कर लें . . .
 
संपूर्ण विश्व में यहाँ वहाँ
मची हुई अफ़रा-तफ़री 
सबके भीतर ख़ौफ़ भरा है 
क्या ग्रामीण और क्या शहरी 
है सर्वत्र रूदन और क्रंदन
संतप्त खड़ा है मानव आज
चल मानवता धारण कर लें . . .
 
सच है बाहर हवाएँ भी अब 
जीवन के अनुकूल नहीं 
विकट समस्या भारी है 
पर घबराना तो ठीक नहीं 
क्या आत्मसमर्पण है उचित 
जो गए बैठ धर हाथ पे हाथ 
चल मानवता धारण कर लें . . .
 
यत्र तत्र सर्वत्र धरा पर 
जाने कितनी लाश पड़ी 
हाय दुखद है श्मशानों पर 
प्रतीक्षा में भीड़ खड़ी 
दारुण पल है हृदय विदीर्ण
रख धीरज तू अपने साथ
चल मानवता धारण कर लें . . .
 
दे त्याग भरोसा सत्ता के 
बधिर मूक गलियारों का 
आत्मबल ही हरण करेगा 
गहन हुए अँधियारों का 
आत्मविश्वास की ले कमान 
चढ़ा प्रयत्न का तीर चाप 
चल मानवता धारण कर लें . . .
 
हालात भयावह हैं बेशक 
परिस्थितियाँ प्रतिकूल भई
है कौन समस्या महा प्रबल
जो पुरुषार्थ सम बड़ी हुई 
बन फल विरत हो कर्मरत 
कर्तव्य मार्ग पर बढ़ा पाद
चल मानवता धारण कर लें . . .
 
यह समय भी बीत जाएगा
लौट समय वह फिर आएगा
है सृष्टि का नियम सनातन
जो बोया था वह पाएगा
मर्यादा की लक्ष्मण रेखा
सदा लाँघ हुआ अनुताप
चल मानवता धारण कर लें . . .

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अंतहीन टकराहट
|

इस संवेदनशील शहर में, रहना किंतु सँभलकर…

अंतिम गीत लिखे जाता हूँ
|

विदित नहीं लेखनी उँगलियों का कल साथ निभाये…

अखिल विश्व के स्वामी राम
|

  अखिल विश्व के स्वामी राम भक्तों के…

अच्युत माधव
|

अच्युत माधव कृष्ण कन्हैया कैसे तुमको याद…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

सामाजिक आलेख

चिन्तन

लघुकथा

गीत-नवगीत

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं