आदमी और आईना
कथा साहित्य | सांस्कृतिक कथा राजीव कुमार16 Jan 2018
आदमी जब लम्बे सफ़र से घर आया और आईना के सामने खड़ा हुआ तो देखा कि आईना गंदा पड़ा है, सो उसने कहा कि “आईने तुम कितने गंदे हो?” और आईना साफ कर दिया। आईने से धूल की परत नीचे गिरती गई और उसका मुस्कराना बढ़ता गया। आदमी नहीं समझ पाया आईना के मुस्कराने का कारण। जैसे ही आईना आधा साफ़ हुआ तो आदमी ने देखा कि ख़ुद का चेहरा आईने से भी ज़्यादा गंदा है। आईने के ठहाके भरी हँसी से आदमी की समझ में आया। आदमी ने अपना चेहरा साफ़ किया और आईना से पूछा, “अब ठीक लग रहा हूँ?”
आईने ने जवाब दिया, “हाँ, आधा ठीक लग रहे हो।”
“आधा ठीक लग रहा हूँ। मतलब क्या है तुम्हारा?”
“मैं तन और मन दोनों से साफ़ हूँ। भीतर भी साफ़ और बाहर भी साफ़। तुमने तो सिर्फ़ अपना चेहरा चमकाया है, दिल तो अभी भी गंदा पड़ा है, बुरे विचार भरे पड़े हैं।” आईने का चेहरा गर्व से चमक रहा था। आदमी ने कहा, “हाँ, ये तो मैंने सोचा ही नहीं। अब मैं भी अपना दिल साफ़ कर लूँगा, बिल्कुल तुम्हारे चेहरे की तरह।”
आदमी ने कोशिश की, दिल को साफ़ करने की मगर अफ़सोस बुराई की एक परत साफ़ होती है तो दस परतें और चढ़ जाती हैं। आदमी आईने को पूरी तरह साफ़ करता रहता है।
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