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आधुनिक परिवेश में नैतिक मूल्यों के उत्थान में साहित्य का योगदान

आज का समय बहुत अशांत है। मनुष्य के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखे जा रहे हैं। वह समझ नहीं पा रहा "कैसे जिया जाए'। वह एक ऐसी जीवन पद्धति की तलाश में है जो व्यवसायिक सफलता देने के साथ मानसिक शांति भी प्रदान करे। पुरानी जीवन पद्धति रास नहीं आ रही, साथ ही तकनीकी युग में व्यवहारिक भी प्रतीत नहीं होती। जहाँ वह पारिवारिक आनंद लेना चाहता है तब परिस्थितियों या सांसारिक कठिनाइयों के कारण बेबस नज़र आता है। युवाओं की सारी शक्ति कैरियर बनाने तथा नयी कुशलता अर्जित करने में निकल जाती है। जीवन में जीविका भी आवश्यक है। व्यस्तता इतनी है कि ना तो बच्चों को समय दे पाता है और न माता-पिता को। महिलायें भी कामकाजी होने के कारण बच्चों की परवरिश सम्बन्धी तकलीफ़ों का सामना कर रहीं हैं। बच्चों में सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्यों की स्थापना, रिश्तों में सामंजस्य तथा सामाजिक दायित्व निभाना आदि धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर है। 

इस संदर्भ में अंग्रेज़ी के कवि विलियम वर्ड्स वर्थ ने ठीक ही कहा है – "the world is too much with us, we have no time to stand and stare" अर्थात्‌ संसार में हम इतने खो गए हैं कि हमारे पास ज़िंदगी की ख़ूबसूरत चीज़ों को देखने का समय नहीं है। प्रकृति, आध्यात्म, धर्म एवं संस्कृति के देखने का समयाभाव है जिस कारण जीवन तनाव पूर्ण हो रहा है। छोटी उम्र में भी शारीरिक व मानसिक समस्यायें देखी जा रही हैं।
मेरे विचार से इन कठिनाइयों को कुछ कम करने में साहित्य का बड़ा योगदान है। साहित्य के मधुर उत्पाद जैसे– कहानी, कविता, उपन्यास नाटक आदि जीवन में शांति एवं आनंद की धारा बहा सकते हैं। आधुनिक उपकरणों जैसे टेलीविजन, कम्प्यूटर, स्मार्ट फ़ोन आदि जिसमें आज की युवा पीढ़ी एवं बच्चे भी अत्यधिक समय व्यतीत करते हैं, द्वारा साहित्य का स्वस्थ प्रदर्शन कर ज़िंदगी को आसान बनाया जा सकता है। हालाँकि मानवीय स्पर्श एवं बातचीत का कोई विकल्प नहीं है। 

साहित्य मानवीय संवेदनाओं का लिखित संग्रह होता है जिसका उद्देश्य मनोरंजन, शिक्षा, समाज सुधार आदि होता है। साहित्य हर सदी का उतार-चढ़ाव देखते हुए अमर हो जाता है। सभी साहित्यों की श्रेष्ठ कृतियाँ आज भी अमर हैं। तुलसीदास, सूरदास, कालिदास आदि कवियों के काव्य आज भी हृदय को आंदोलित करते है। हिन्दी के महान कवि दिनकर अपनी कविताओं के माध्यम से सीना तान कर जीना सिखाते हैं। अंग्रेज़ी साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार विलियम शेक्सपियर अपने नाटकों में सामाजिक, नैतिक एवं मानवीय शिक्षा के मूल्यों को बख़ूबी से संप्रेषण के कारण विश्व विख्यात हैं। 

आज के युग में साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान है। साहित्य की विभिन्न विधाओं का अध्ययन कर मानव समाज अपनी समस्याओं का समाधान तथा तनाव कम कर सकता है। सभी कवि एवं लेखक अपनी कृतियों के माध्यम से सुझाव देते हैं कि अधिक से अधिक प्रकृति के पास रहें, वर्तमान का आनंद लें तथा भविष्य के लिए आशावान रहें। सहित्य का हर रूप हमें कुछ सिखाता है साथ ही मनोरंजन भी करता है। 

साहित्य सांस्कृतिक धरोहर भी है। नैतिक शिक्षा का भंडार "पंचतंत्र की कहनियों को पढ़ने से मिलता है। प्रेमचंद की कहानियाँ सामाजिक बुराइयों, शोषण, ग़रीबी का भावात्मक चित्रण करती हैं तथा मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ती है। सत्यता से परिचय कराते हुए जीवन जीना सिखाती हैं। इस धारा में भक्ति साहित्य भारतीय संस्कृति एवं उच्च आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कराता है। 

अच्छा साहित्य सदैव भावनाओं को शुद्ध एवं विचारों को परिमार्जित करता है। कहा जा सकता है साहित्य जीवन के सत्य एवं सौन्दर्य के सुन्दर प्रदर्शन को मनुष्य तक पहुँचाने का माध्यम है जिससे मानव अपनी आवश्कताओं के अनुसार ग्रहण कर 'जीने की कला पा सकता है। 

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