आज का सत्य
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मोहन सिंह यादव15 Nov 2019
हम शहरी हों या देहाती,
सब में धोखा ही रहता है,
कुछ अधिक चोरियाँ करते हैं,
कुछ कम लुटेरे होते हैं,
पर यही सत्य तो होता है,
कि सभी चचेरे होते हैं।
कुछ अधिक दर्द तो देते हैं,
कुछ कम दर्द कर देते हैं,
पर अंतर क्या है ?
सभी दर्द तो देते हैं,
सब प्रेम–प्रीति की बात करें,
सब अंत में धोखा देते हैं।
कुछ आहें भरते मिलते हैं,
कुछ हँसते–हँसते मिलते हैं,
कुछ ठंडी हवा में बहके हैं,
कुछ गर्म हवा में जलते हैं,
सबकी यारो क्या कहना ?
हम धोखे ही में पलते हैं।
छोटा हो या बड़ा हो,
सब सत्य एक सा होता है,
कुछ सत्य आप के पास है,
कुछ सत्य हमारे पास।
पर फ़रेब यह क्यों?
कुछ झूठ हमारे पास है,
कुछ झूठ आप के पास।
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