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आज मैं शर्मिंदा हूँ?

आज मैं शर्मसार हूँ ...लानत है, नेताओं को ... एक सर्वे के मुताबिक भ्रष्टाचार के क्षेत्र में भी मेरा भारत चीन से पिछड़ गया है। आबादी में तो हम चीन से पीछे थे ही ...लेकिन अब भ्रष्टाचार के क्षेत्र में भी चीन ने भारत को खदेड़ दिया है!

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 18 वर्षों में पहली बार भारत चीन से कम भ्रष्टाचारी है, लेकिन इसका यह अभिप्राय नहीं कि भारत से भ्रष्टाचार का विनाश हो गया है बल्कि इसका मतलब यह है कि चोर तो दोनों देश हैं बस इस मामले में चीन थोड़ा ज़्यादा लुच्चा है! सन् 2006 और 2007 में दोनों देशों का इस क्षेत्र में एक ही दर्जा था। दोनों बड़ी टक्कर के खिलाड़ी थे लेकिन अब हमारे हलक़ से यह बात नहीं उतर रही कि चीन हमसे आगे कैसे निकल गया है! क्या हो गया है हमारे निकम्मे राजनीतिज्ञों को?

विश्व में कम से कम भ्रष्टाचार वाले देशों में आस्ट्रेलिया, कनाडा, सिंगापुर और डेन्मार्क जैसे देशों के नाम मुख्यतः हैं।

भ्रष्टाचार में चीन से पिछड़ने के लिए भारतीय जनता में जागरूकता के आने और अन्ना-हज़ारे के जन आंदोलन को मुख्यतः रूप से दोषी ठहराया जा रहा है।

मोदी जी ने भ्रष्टाचार को दाल समझकर अपने चुनाव के बाद झट से नारा लगा दिया है “न खाऊँगा और न किसी को खाने दूँगा!” मोदी जी की नीतियाँ उन्हीं की अपनी बनाई नीतियों का प्रतिरोध करती हैं। मोदी जी अगर लोगों को खाने नहीं देंगे तो भला शौचालय क्या “शो" के लिए बनवाये जा रहे हैं!

बाज़ार में ऐसी दालें जिसे खाने से बकरी भी अपना मुँह बनाती है के भाव आजकल आसमां छू रहे हैं! बेचारा, ग़रीब बाज़ार जाता तो दाल लेने के लिए है लेकिन उससे उसकी हैसियत से बाहर - महँगी दाल ख़रीदने की हिम्मत नहीं हो पाती। बस, दाल को सूँघकर ही वह अपने मन को तसल्ली दे लेता है! पति को हाथ में खाली झोले के साथ मुँह लटकाए देख कर पत्नी भी यह कहकर सब्र कर लेती है ...आप भी न ...!

सुना है, आजकल भारत में प्याज़ का भी यही हाल है और लोगों ने उसे औषधि की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। हरेक चीज़ के भाव को आग लगी हुई है। लोगों ने मिर्च-मसालों का इस्तेमाल करना कम कर दिया है या छोड़ दिया है। मेरे इस कथन की पुष्टि फ़ेस-बुक पर आए दिन हल्दी, अदरक, अजवाइन, लहसुन, प्याज़ आदि के फ़ायदे बताने वाले नुसखों से होती है। सोशल मीडिया और पत्र-पत्रिकाओं में आजकल पाक-विद्या (तरह-तरह के भोजन बनाने की कला) की कोई बात करता नहीं दिखता, लेकिन खाली पेट में मरोड़ पड़ने से बचने के लिये घरेलू नुसख़ों की भरमार लगी दिखती है। हरेक ऐरा-गैरा हकीम और पंसारी बना लगता है! तरह-तरह के जानलेवा सुझाव दिए जाते हैं जैसे हार्ट-अटैक हो रहा हो तो पीपल का पत्ता खाओ, अस्पताल नहीं जाओ ...अपनी मौत घर पर ही बुलाओ!

उम्मीद तो नहीं लेकिन, मैं भी मरने के लिये अगर भारत लौटा तो उससे पहले “टाइम-पास” के लिये पंसारी की एक दुकान खोलने की तमन्ना रखता हूँ क्योंकि अमेरिका में जीने के लिये अमेरिका के एक-दो डालरों में एक किलो दाल का मिलना सस्ता तो लगता है, मगर यक़ीन करें यहाँ मरना बहुत महँगा है और मरने से पहले इलाज भी बहुत महँगा है! दवाइयों की भारी क़ीमतें भरकर गोलियाँ हलक़ से नीचे नहीं उतरतीं!

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