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आम कीजिए मुझे ख़ास कौन कर गया

आम कीजिए मुझे ख़ास कौन कर गया   
वो तो इक सराब था जाने अब किधर गया 

 

मैं कहाँ कहाँ गई इक तिरी तलाश में
तू मिरा नसीब है तू कहाँ ठहर गया

 

लाख कोशिशें हुई बाँध लें इसे यहीं
कौन रोकता उसे वक़्त था गुज़र गया

 

और क्या मैं माँगती शाम के चराग़ से
रौशनी तमाम वो नाम मेरे कर गया

 

इस क़दर हवा चली कुछ मुझे दिखा नहीं
प्यार का ग़ुबार था सब ख़राब कर गया

 

ज़िंदगी फटी हुई इक क़िताब सी रही
रोज़ इस क़िताब का सफ़्हा इक उतर गया

 

शोर था मचा हुआ दूरियाँ थी दरमियाँ
मैं पुकारती रही कारवाँ गुज़र गया

 

पेट की पुकार थी छोड़ना पड़ा सदन
नौकरी तलाशने गाँव से नगर गया  

 

बार-बार तू नज़र यूँ न आज़मा 'सरु'
फिर उसे न देख जो आँख से उतर गया

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टिप्पणियाँ

अमित 'अहद' 2019/09/01 02:56 PM

वाह्ह्ह्ह्ह !

सुरेन्द्र 2019/08/25 07:06 AM

वाह वाह वाह , सारे अशआर लाज़वाब हैं मगर मतले और मकते का जवाब नहीं

Shalini Chaudhary 2019/08/25 04:43 AM

It's an amazing work ma'am...keep on writing..

Vipin 2019/08/25 02:19 AM

Too good bahut sunder

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