आने वाला कल देखो
काव्य साहित्य | कविता सजीवन मयंक24 Dec 2007
मत गिनो मील के पत्थर को, तुम बस अपनी मंज़िल देखो।
जो बीत गया सो बीत गया, अब आने वाला कल देखो ॥
हर पथ में आतीं बाधाएँ,
हिम्मत से सबको पार करो।
अपने भविष्य के सपनों को,
निज मेहनत से साकार करो॥
विषधर हैं चारों ओर, महकता फिर कैसे संदल देखो ।
जो बीत गया सो बीत गया, अब आने वाला कल देखो॥
जीवन निर्झर के पानी सा,
अविराम मधुर धुन में गाये।
गतिमान रहे चट्टानों पर,
मैदानों में जा सुस्ताये॥
कुछ वृक्ष लगाओं छाया के, मिलने वाला प्रतिफल देखो।
जो बीत गया सो बीत गया, अब आने वाला कल देखो॥
जो लोग राह में रुक जाते,
तो सिर्फ अंधेरा मिलता है।
जो जाग रहा है उसको ही,
एक नया सबेरा मिलता है॥
हों कठिन प्रश्न चाहे जितने तुम उत्तर एक सरल देखो।
जो बीत गया सो बीत गया, अब आने वाला कल देखो॥
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गीतिका
कविता
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