आसक्ति-विरक्ति द्वंद्व
काव्य साहित्य | कविता लोकेश शुक्ला 'निर्गुण'28 Jan 2019
कभी है ज़माना याद
कभी खुद को भूल रहा हूँ
आसक्ति-विरक्ति के बीच
झूला झूल रहा हूँ
न जाने क्या ग़म है कि
सिकुड़ता जा रहा
न जाने क्या ख़ुशी है
कि फूल रहा हूँ
एक तराजू है ..हर हाथ
पाप-पुण्य का
हर घड़ी... हर वक़्त
तुल रहा हूँ
एक फ़िज़ा है
जो मैला किए जाती है मुझको
एक गंगा है
जिसमें धुल रहा हूँ
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