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आसमानी आफ़त

 बंटी बंदर ने घबराएं हुए बंदरों से कहा, "साथियो! घबराने की ज़रूरत नहीं है। हम यहाँ से दुष्ट लालू लोमड़ को भगाने का कोई न कोई उपाय अवश्य करेंगे।"

तभी लालू लोमड़ उस पेड़ के नीचे आ धमका।

बंटी ने फुसफुसा कर कहा, "हमें जल्दी ही इस आफ़ती पेड़ को छोड़ देना चाहिए।"

"जी! आप सही कहते हैं," कालू बंदर ने कहा और बंटी बंदर के साथ दूसरे पेड़ पर चला गया।

लालू ने यह बात सुन ली थी, "यह आफ़ती पेड़ है।" मगर, उस ने अपने सिर को झटका दिया, "हो सकता है, बंदर उसे यहाँ से भगाने के लिए कोई तरकीब लगा रहे हों। इसलिए वह पेड़ के नीचे बैठ गया।

उसी समय आसमान में बादल छाने लगे। पानी का मौसम था। बिजली गरजने लगी। तभी पास के पेड़ पर बैठे बंटी बंदर ने इशारा किया।

दूसरा बंदर आफ़ती पेड़ पर गया।

तभी धड़ाम की आवाज़ आई। कोई भारी-भरकम चीज़ लालू के पैर पर गिरी। वह ज़ोर से चीख उठा, "अरे मरा! कोई बचाओ," कहते हुए वह डर के मारे भागने लगा।

लालू के पैर पर ज़ोरदार चोट लगी थी। उस से चलते नहीं बन रहा था। वह लंगड़ा कर भागने लगा।

तभी पीछे से बंटी ने चिल्ला कर कहा, "अरे महाराज! कहाँ भागे जा रहे हैं। आप इस आफ़ती पेड़ का इलाज करते जाइए।" मगर, वहाँ सुनने वाला कौन था। लालू कब का नौ दो ग्यारह हो चुका था।

हुआ यह था कि बंटी बंदर ने अपनी योजना के मुताबिक पेड़ पर फैली बेल पर लगे कद्दू में से एक कद्दू काट कर नीचे गिरा दिया था। वह कद्दू सीधे लालू के पैर पर गिरा था। जिसे आसमानी आफ़त समझ कर लालू डर कर भाग गया।

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