अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

आत्मसुप्ति से आत्मजागृति की “अमृत” यात्रा

समीक्षित कृति : अमृत
लेखक : जसबीर कालरवि
अनुवाद : सुमन कुमार घई
प्रकाशक : हिन्दी राइटर्स गिल्ड
मूल्य : 10 डॉलर
पृष्ठ संख्या : 86

जसबीर कालरवी का यह उपन्यास सीपियों की सुप्त चेतना से निकल कर मोती के प्रकाश की बुद्ध-चेतना तक पहुँचने का उपन्यास है। बुद्ध होने की यात्रा मनुष्य द्वारा परम सत्य को पाने की यात्रा है। इस यात्रा में मनुष्य को अपनी बँधी-बँधायी सोच के दायरों को तोड़ कर जीवन के वास्तविक दुखों से साक्षात्कार करता है। दुखों से साक्षात्कार करना एक तपस्या है जिसे इस उपन्यास का नायक अमृत अपनी तरह से करता है। उसकी यह यात्रा रूपी तपस्या, बोधि वृक्ष के नीचे बैठ कर नहीं होती बल्कि जीवन के विविध आयामों पर सोचते हुए, आत्म-सत्य और आत्मानंद के रहस्य को जानने की इच्छा से प्रारंभ होती है। इस यात्रा के उद्देश्य में वह सफल तो होता है पर बीच-बीच में कई बार उसे असफलता भी मिलती है, परम सुख की चिंतामणि मिल कर भी खो जाती है। इस उपन्यास की कहानी असफलता के इन्हीं गहनतम क्षणों से प्रारंभ होती है जब आत्मानंद का अभाव अमृत को आत्महत्या के बिंदु तक ले आता है। उसे लगता है कि वह बिना मतलब जिये जा रहा है, जैसे कि जीना उसकी आदत बन गया हो और वह आत्महत्या करके इस आदत को तोड़ देना चाहता है। इन्हीं घोर निराशा और अवसाद के क्षणों में वह अपने जीवन के पन्ने पलट कर देखता है और अन्तत: उसे आनंद की प्राप्ति होती है।

यह उपन्यास मनुष्यता के आदि सूत्रों को खोजने की कहानी है। इसका मुख्य चरित्र “अमृत” अपने होने के कारणों की खोज करता हुआ, बाहर से अंदर की यात्रा करता है। इसे आत्म विश्लेषण की यात्रा भी कहा जा सकता है। यह यात्रा कई स्तरों पर की गई है। सबसे पहले, यह यात्रा शरीर से आत्मा और आत्मा से शरीर के रास्ते पर की गई है, यह आत्म सुप्ति से आत्म चेतना तक की यात्रा है। शारीरिक स्तर पर यह यात्रा सामाजिक यथार्थ से व्यक्ति के आदर्शों की ओर की गई यात्रा है । इस यात्रा में जसबीर कालरवी ने धर्म, सम्प्रदाय, नेता, कवि, गुरू-पंडितों, वर्तमान शिक्षा प्रणाली, कनाडा और पंजाब के पंजाबियों की विशेषतायें आदि अनेक सामायिक विषयों पर टिप्पणी दी है। यह यात्रा दुनिया के विभिन्न दार्शनिकों के विचारों की यात्रा भी है जिसके चलते अरस्तू, गोगोल, तुर्गनेव, फ्रायड, सार्त्र, नीत्शे, आसपंनस्की आदि के विचारों के निचोड़ को प्रस्तुत किया गया है। अमृत इन सभी दार्शनिकों के विचारों को आत्मानंद पाने की इच्छा से खँगालता है पर उसे किसी भी दार्शनिक के विचारों से अपने उद्देश्य की प्राप्ति होती नहीं लगती है।

यद्यपि ये सारी यात्रायें उसी एक आत्मानंद की स्थायी प्राप्ति के उद्देश्य से की गई हैं किन्तु यह उपन्यास आध्यात्मिक उपन्यास नहीं है। यहाँ “अमृत” अपने आत्मविकास की चिंता समाज में रहते हुए करता है और अनेक सामजिक विषयों पर गहराई से विचार भी करता है। इस चिंतन –मनन की विशेषता यह है कि हर विषय पर लीक से हट कर विचार प्रस्तुत किये गये है और बार-बार इसी बात पर ज़ोर दिया गया है कि हम सब को खुले मन और खुले दिमाग से हर बात और विषयों पर सोचना चाहिये। हर जगह हमें जसबीर की नवीन सोच देखने को मिलती है।

 

यह कहानी अमृत के “अमृत” होने की कहानी है। संसार के दिये हुए पैमाने पर जीवन जीते-जीते कोई विरला ही पूछता है कि “हम कौन हैं, हम क्या कर रहे हैं और हमें जाना कहाँ है” जो यह प्रश्न पूछता है उसे दुनिया के बनाये मानदंडों, दुनिया की बनाई सुख की परिभाषा से बाहर निकलना पड़ता है। सदियों से चले आये मानसिक साँचों को तोड़ना आसान नहीं होता। अमृत यह कठिन काम करता है, वह बाहर दिखाई देने वाली, रूप, रस, गंध और स्पर्श से पहचान में आने वाली दुनिया के पीछे छिपे रहस्य को जानना चाहता है, जसबीर लिखते हैं,” अज्ञात को तो जाना जा सकता है पर रहस्य को कैसे जाना जाये” । रहस्य जानने की उसकी यह चाह इतनी बड़ी है कि उस के सामने बाकी सब रिश्ते और दुनिया छोटी पड़ जाती है। वह एक फकीर और संत सा मालूम देने लगता है पर वह संत होने की नहीं, सत्य होने की चेष्टा में है। वह एक अनवरत आनंद, एक दिव्य प्रकाश में रहना चाहता है पर यह आनंद और प्रकाश उसके हाथ आते-आते भी कहीं गायब हो जाते हैं। उनकी अनुपस्थिति उसे बेचैन बनाती है और कुछ और न समझ आने पर वह इस प्रकाश के अभाव में अपने जीवन का अंत कर डालना चाहता है। इस अनुभव को आज के जीवन के संदर्भ से जोड़ते हुए जसबीर सिसीफस के उदाहरण का सार्थक प्रयोग करते है।

इस उपन्यास में जसबीर कालरवी पाठकों को सीपी से मोती बनने की चितंन यात्रा पर ले जाते हैं। यह सच ही है कि सबको अपने-अपने अस्तित्व के कारणों और आत्मा के प्रकाश को स्वयं ही ढूँढना पड़ेगा और पाषाणी जड़ता से बुद्ध होने की चेतना तक की यात्रा भी स्वयं ही करनी पड़ेगी।यह उपन्यास शैली के स्तर पर एक नया प्रयोग है जहाँ उपन्यास के परम्परागत तत्वों की उपेक्षा कर दी गई है। कहानी लगभग न के बराबर है और पात्रों के नाम पर केवल एक पात्र है। यह रचना उपन्यास से अधिक आत्मचिंतन और आत्म खोज का एक लंबा संवाद लगता है पर यह चिंतन इतना प्रवाहशील है कि ऐसा लगता है जैसे “अमृत” पाठकों से अपने मन की बातें कर रहा हो।मैं श्री सुमन कुमार घई को धन्यवाद देती हूँ जिन्होंने इसका पंजाबी से हिन्दी में अनुवाद किया है और यह अनुवाद इतने सुन्दर तरीके से किया गया है कि इस पुस्तक की आत्मा भी सुरक्षित रही है साथ ही पंजाबी भाषा का लहज़ा और उस की महक भी बराबर बनी रही है। इससे पहले मैंने जसबीर कालरवी की कविता की पुस्तक “रबाब” पढ़ी थी। उस संग्रह में उनकी प्रौढ़ सोच और लिखने का नया तरीका देखने को मिला था। यह उपन्यास उसी गहरी सोच का विस्तार है।

मुझे आशा है कि यह उपन्यास पंजाबी और हिन्दी साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान बनायेगा ।
जसबीर कालरवी को इस सार्थक रचना के लिये बहुत-बहुत बधाई॥

 

- डॉ. शैलजा सक्सेना
२२८४, डेलरिज ड्राइव, ओकविल,
ओंटारियो-एल६एम ३एल५

 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा

साहित्यिक आलेख

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक चर्चा

नज़्म

कहानी

कविता - हाइकु

कविता-मुक्तक

स्मृति लेख

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं