आज़ादी मुफ़्त नहीं मिलती
काव्य साहित्य | कविता दिलीप सिंह शेखावत15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
मनाओ जश्न दिल खोल के यारो
घड़ी ऐसी हर बार नहीं मिलती
खोया सब कुछ पाने को इसको
आज़ादी मुफ़्त नहीं मिलती
खोया सुभाष भगत गाँधी को
खोया मंगल वीर लाल रानी को
कितनों का लहू मिला मिट्टी में
जिनकी पहचान नहीं मिलती
खोया सब कुछ पाने को इसको
आज़ादी मुफ़्त नहीं मिलती
स्वर्ण चिड़िया के पर को खोया
संस्कृति खोयी ज्ञान को खोया
जाने क्यों भारत माता की वो
स्वर्णिम पहचान नहीं मिलती
खोया सब कुछ पाने को इसको
आज़ादी मुफ़्त नहीं मिलती
मातृभूमि के टुकड़े हो गए
लाखों मरे कई बेघर हो गए
खटास भरी क्यों जाति धर्म में
क्यों जन में वो मिठास नहीं मिलती
खोया सब कुछ पाने को इसको
आज़ादी मुफ़्त नहीं मिलती
मनाओ जश्न दिल खोल के यारो . . .
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