अभी रुको हवा को आने दो
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत डॉ. मोहन बैरागी1 Sep 2021 (अंक: 188, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
अभी रुको बादल छट जाने दो
अभी रुको हवा को आने दो
ठहरे अधरों में गहरी बड़ी प्यास है
इन आँखों के समंदर सभी उदास है
खुशियों के जैसे उम्रभर उपवास है
जीवन सभी के अनपढ़े उपन्यास है
अभी ज़रा तम को गहराने दो
अभी रुको हवा को आने दो
भोर जो लालिमा का बस आभास है
ख़ुशियाँ तो जैसे राम का वनवास है
यह देह हड्डियों पंजरों का विन्यास है
दुख मनुष्यता के हिस्से का ही त्रास है
अभी घटा को बरस जाने दो
अभी रुको हवा को आने दो
चाहे ख़ुशियाँ गयीं चलीं जो संन्यास है
ठहरेगी अधरों में आँखों में विश्वास है
चक्र सब चले जो जीवन का व्यास है
चमकेगी जैसे चमकता अमलतास है
अभी चमन को महक जाने दो
अभी रुको हवा को आने दो
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