अचला सुन्दरी
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज15 Jul 2019
सूरज उत्तरायण को आया
लगी खेलने खिलकर धूप
हुई किशोरी सी अचला
शर्माकर छिपा रही है रूप।
वायु की कंघी से अपने
घने बाल सुलझाए हैं
सेमल ने उसके बालों में
सुन्दर सुमन सजाए हैं।
एक साल के फटे पुराने
वस्त्र छोड़ नूतन पहने
वल्लरी की सुन्दर माला
प्रसूनों के मंजुल गहने।
कोमल कनक कलाइयों में
सतरंगे कंगन खनक रहे
पीत पत्ते पाँवों के घुँघरू
मधुर मधुर अब छनक रहे।
हाथ किए सरसों ने पीले
सखियाँ खिलकर गले मिली
सोलह सिंगार किए सुन्दर
यह देख देख कर रति जली।
कोयल ने शुरू किए गाने
भंवरों ने राग मिलाया
उत्साह का उत्सव होता
सबका मनभावन आया।
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