अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

एक्टर की मौत – हत्या या आत्महत्या

सुबह के आठ बजे बज रहे थे। गणेश भोजनालय में हलकी-सी भीड़ थी। चाय-नाश्ते के लिये लोग जमा थे। मंदेश गुजरैल ने भोजनालय में प्रवेश करते ही यहाँ-वहाँ देखा और एक परिचित की टेबल पर उसके सामने की कुर्सी पर बैठ गया। उसने उपेक्षापूर्वक हँसी के साथ परिचित को संबोधित किया, “सुप्रभात पुंडे। कैसा चल रहा है?”

पुंडे ने गंभीरता से उत्तर दिया, “तहक़ीक़ात करेगा?”

मंदेश के चेहरे पर अभी भी वैसी ही मुस्कान थी जैसी उन अफ़सरों के चेहरे पर रहती है जो ईमानदारी से अपना काम करके भी पदोन्नति के वक़्त नज़रंदाज़ कर दिए जाते हैं। ऐसे लोग जब भी अपने उन संगी-साथियों से मिलते हैं जो सिर्फ़ चमचागिरी के बल पर ऊपर उठते जाते हैं, तो उनके मुँह से उपहास भरे अल्फ़ाज़ ज़रूर निकल जाते हैं।

पुंडे को मंदेश की मुस्कान से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। उसने मंदेश से कहा, “आजकल टीवी पर और अख़बारों में क्या चल रहा है तेरे को तो मालूम ही है।”

मंदेश बोला, “वही अभिनेता जिसने अपने आप को फाँसी लगा दी?”

पुंडे ने कहा, “कुछ लोगों का मानना है कि उसने अपने आप को फँसी नहीं लगाईं।”

मंदेश ने आश्चर्य प्रकट किया, “अच्छा? कौन?”

पुंडे ने अपना चाय का कप उठाया और एक चुस्की भरी, “उसके माँ-बाप।”

उसी उपहासभरी मुस्कान के साथ मंदेश ने पूछा, “तुमको कैसे पता ये बात?”

पुंडे ने जबाव दिया, “मेरी बात हो चुकी है उनसे।”

मंदेश ने पूछा, “ऐसी कौन-सी बात है जो उनको पता है लेकिन पुलिसवालों को नहीं?”   

पुंडे ने चाय ख़त्म की, “तू उनसे बात कर ले। बिहार से आये हैं वे दोनों। शिववरण और ललादेवी नाम है। होटल बृजमोहन में रुके हैं।”

मंदेश ने घूरते हुए पूछा, “आधिकारिक?”

पुंडे ने लापरवाही से उत्तर दिया, “जैसा तेरे को लगे। लेकिन हमारा नाम नहीं लाना बीच में।”

बैरे ने एक कप चाय मंदेश के सामने रख दी। पुंडे चला गया। मंदेश ने कुछ सोचते हुए धीरे-धीरे चाय पी और उसके बाद तुरंत होटल बृजमोहन पहुँच गया। 

 

♦ ♦ ♦

दोनों दंपती अपने कमरे में ही थे। उन्होंने मंदेश के लिये दरवाज़ा खोला तो मंदेश ने अपना परिचय दिया, “मैं पुलिसवालों की तरफ़ से हूँ।”

ललादेवी का चेहरा शायद रो-रोकर सूख गया था। उसने पूछा, “तुम पुंडे के साथ काम करते हो?” 

मंदेश ने सर हिला दिया और कुर्सी पर बैठते हुए कहा, “आप पुंडे जी को कह रहे थे कि आपके बेटे पंजलेश ने खुद को फाँसी नहीं लगाई है?”

शिववरण ने तैश में आकर कहा, “बिलकुल। कैसे-कैसे लोग थे उस रात पार्टी में।”

ललादेवी ने भी उत्तेजित होते हुए ग़ुस्से में कहा, “बिल्डिंग के गार्ड से कोई क्यों नहीं पूछ रहा है?” 

शिववरण की भी आँखें लाल थीं, “वह औरत भी थी उस रात।”

मंदेश ने उद्विग्नतापूर्वक पूछा, “रूपल? पंजलेश की मंगेतर?”

ललादेवी ने घृणा से कहा, “रूपल!” 

शिववरण ने पूछा, “इन लोगों की बातों पर आप लोग भरोसा कैसे कर सकते हो?”

मंदेश ने संजीदगी से प्रश्न किया, “पंजलेश की तरफ़ से कभी कोई ऐसा संकेत मिला आप लोगों को?”

ललादेवी ने पूछा, “किस बारे में?”

मंदेश ने हिचकिचाते हुए कहा, “यही कि . . . वह . . .”

शिववरण ने चिढ़ते हुए मंदेश का वाक्य पूरा किया, “किसी अवसाद का शिकार नहीं था हमारा पंजू। किसी प्रकार का कोई मानसिक रोग नहीं था उसे, समझे?”

ललादेवी भी गु़स्से थी, “और होगा भी क्यों?”

मंदेश ने फ़ौरन बात को बदला, “पंजलेश से आपकी आख़िरी बार कब बात हुई थी?”

दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया। 

शिववरण बोला, “हम लोगों ने वकील से बात की है। वकील का कहना है कि हमारा केस बहुत मज़बूत है।”

मंदेश के चेहरे पर चिंता के भाव आ गए, “हर वकील यही कहेगा। उनका काम ही है यह। पुलिसवालों को बिलकुल अच्छी नहीं लगती है ये बातें।”

ललादेवी ने भड़ककर कहा, “पुलिसवालों ने आत्महत्या का मामला बताकर फ़ाइल बंद कर दी है। ऐसा कैसे कर सकते हैं पुलिसवाले?”

मंदेश ने समझाने के लहजे में कहा, “आपको चाहिए कि जो दरवाज़ा पुलिसवालों ने बंद कर दिया है वह फिर से खुले। आप चाहते हो कि न केवल वरिष्ठ अधिकारी बल्कि न्यायालय और देश की जनता का भी ध्यान जाए?”

दोनों सिर्फ़ ग़मगीन आँखों से मंदेश को देखते रहे तो मंदेश ने कहा, “इसके लिये अख़बारों में बड़ी सुर्ख़ियाँ चाहिएँ। टीवी में ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में यह ख़बर चाहिए। सभी लोगों तक यह ख़बर पहुँचनी चाहिये, इसके लिये आपको उनके मुँह पर सब तथ्य फेंकने होंगे। सिर्फ़ बोलने से काम नहीं चलता है कि ‘हमारे बेटे को मार डाला’। वकील ने यह बात बताई आपको?”

ललादेवी ने विनती की, “आप किसी भी प्रकार से हमारी मदद करो।” 

 

♦ ♦ ♦

होटल बृजमोहन से निकलकर मंदेश सीधे वहाँ पहुँचा जहाँ सबसे पहले पंजलेश की लाश को लाया गया था। शव-परीक्षण कक्ष में मौजूद कर्मचारी से बात करने पर पता चला कि लाश फ्रीज़र में थी। मंदेश ने फ्रीज़र में रखी लाश को निहारा। उसने पंजलेश के कई चलचित्र देखे थे, दिखने में तो लाश वैसी ही दिख रही थी, लेकिन सफ़ेद हो चुकी थी। शरीर भी अकड़ा हुआ था। फिर भी उसे यक़ीन हो गया कि पंजलेश के सिवाय यह कोई और नहीं हो सकता है। थोड़ा ध्यान से देखने पर मंदेश को शरीर पर गहरे दाग़ नज़र आये। 

मंदेश ने कर्मचारी से पूछा, “ये दाग़ कैसे हैं?”

कर्मचारी ने ग़ौर किया और ‘पता नहीं’ की मुद्रा में सिर हिला दिया।

मंदेश ने फिर पूछा, “फाँसी लगाने से पहले इसने अपने आप को ही पीटा है क्या?”

कर्मचारी सकपका गया, “मुझे नहीं पता।” 

लाश के साथ लाये गए सामान को एक प्लास्टिक पैकेट में सीलबंद रखा गया था। मंदेश ने पैकेट की सामग्री पर ग़ौर किया। 

कर्मचारी ने कहा, “सामान को व्यवस्थित ही रहने दो। नहीं तो मुझे सुनने को मिलेगा।”

मंदेश ने निश्चिन्तता से उससे कहा, “तुम चिंता मत करो।” 

पैकेट की सामग्री में गले में पहना जाने वाला एक लॉकेट भी था। पैकेट से लॉकेट निकालकर मंदेश ने उसका अध्ययन किया, तो उस लॉकेट के पीछे कुछ लिखा था। मंदेश ने अपने मोबाइल से फोटो ले लिया। 

कर्मचारी ने मंदेश को फोटो लेते देखा तो डर गया, “वापिस रख दो प्लीज़। हमारे शव-निरीक्षक साहब आते ही होंगे। ठीक साढ़े दस बजे पहुँच जाते हैं वो।” 

मंदेश ने कर्मचारी को मुस्कुराते हुए देखा और फिर बाहर आ गया। बाहर आकर मंदेश ने लॉकेट के पीछे का फोटो ज़ूम करके देखा। उसपर लिखा था, ‘सप्रेम भेंट।’ तारीख़ भी लिखी थी और दुकान का नाम भी। 

 

♦ ♦ ♦

दुकान जाने-माने शहर के बड़े जौहरी की थी। मंदेश जब लॉकेट के पीछे लिखी दुकान पर पहुँचा तब लोग-बाग आने शुरू ही हुए थे। सुबह के कोई साढ़े ग्यारह बज रहे थे। काफ़ी बड़ी दुकान थी। काउंटर के पीछे खड़ी एक विक्रेत्री को मंदेश ने लॉकेट का फोटो दिखाकर पूछा, “यह अपने यहाँ का लॉकेट है?”

विक्रेत्री ने लॉकेट पहचान लिया, “जी।”

मंदेश ने कहा, “इस पर तारीख़ भी लिखी है।”

विक्रेत्री ने बताया, “हम लोग अक़्सर जन्मदिन या शुभ अवसर की तारीख़ लिखकर देते हैं। तोहफ़ा देते वक़्त लोग लिखवाते हैं।” 

मंदेश ने पूछा, “इस पर ये बड़ा सा नंबर क्या लिखा है?”

विक्रेत्री ने बताया, “यह सीरियल नंबर है। इससे हमारे डेटाबेस में रिकॉर्ड बना रहता है।”

मंदेश ने अपना परिचय-पत्र दिखाया, “इस लॉकेट को किसने ख़रीदा है और पेमेंट कैसे की है, इसकी जानकारी दे दीजिये।” 

विक्रेत्री मुस्कुरा दी। उसने यहाँ-वहाँ देखा, “मैनेजर साहब तो अभी आये नहीं हैं। वो ही बता सकते हैं।”

मंदेश ने भी मुस्कुराकर कहा, “अगर मैंने तुमको बता दिया कि यह लॉकेट किसको तोहफ़े के रूप में मिला था, तो . . .”

विक्रेत्री ने मुस्कुराते हुए ही कहा, “हमारे यहाँ बड़े से बड़े लोग आते हैं। करोड़ों की ख़रीदारी एक ही झटके में कर जाते हैं। मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा।”

विक्रेत्री के बेबाक उत्तर को सुन मंदेश चकित हो गया, लेकिन उसे पता था कि मैनेजर आनाकानी कर सकता है, या वारंट लाने के लिये बोल सकता है, इसलिए उसने सामने खड़ी युवती पर ही ज़ोर डालना उचित समझा, “पंजलेश।”

युवती अवाक्‌ रह गयी। टीवी और अख़बारों में वही ख़बरें घूम रही थी। उसने तुरंत कहा, “आपको तहक़ीक़ात के लिये ज़रूरी चाहिए होगा। मैं अभी कंप्यूटर देखकर बताती हूँ।”

दो ही मिनटों में युवती कंप्यूटर से जानकारी एक छोटे कागज़ पर लिख लायी, “ये वाले लॉकेट अब स्टॉक में नहीं हैं। कंप्यूटर में रिमार्क डाला हुआ है कि जन्मदिन का तोहफ़ा है और जन्मदिन की तारीख़ एम्बॉस करनी है।” उसने मंदेश को कागज़ दे दिया। 

कागज़ पर किसी महिला का नाम और पता लिखा था। विक्रेत्री ने मुस्कुराकर धीरे से मंदेश को बताया, “इन्होंने पहले भी हमारे यहाँ से कई आइटम पंजलेश के लिये ख़रीदे हैं। अलग अलग मौक़ों पर तोहफ़े के रूप में।”

मंदेश ने कृतज्ञतापूर्वक विक्रेत्री को धन्यवाद दिया। 

 

♦ ♦ ♦

मंदेश ने अपनी पत्नी, बेशामी, को फोन किया और घर पर खाना तैयार रखने के लिये कहा। जब थोड़ी ही देर में वह घर पहुँचा, तो गर्मागर्म भोजन तैयार था। उनका बेटा घर पर ही ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर रहा था। लेकिन बेहद ग़ुस्से में नज़र आ रहा था। अपने बेटे को ग़ुस्से में देख मंदेश ने पत्नी से पूछा, “इसको क्या हो गया है?”

बेशामी ने बेटे के क्रिकेट बैट की तरफ़ इशारा करके कहा, “आज अपना क्रिकेट बैट तोड़ दिया इसने।”

मंदेश ने अचरज से पूछा, “अरे, क्यों?”

बेशामी ने आगे कहा, “बैट के ऊपर लगा धोनी का फोटो भी फाड़कर निकाल दिया।”

मंदेश मुस्कुराया, “क्यों? क्या हुआ? कोई क्रिकेट मैच हार गयी है क्या इंडिया की टीम?”

बेशामी भी मुस्कुराई, “नहीं। वही एक्टर, जिसने धोनी का किरदार निभाया था, उसकी ख़ुदकुशी का समाचार टीवी पर देखा, तो बेहद मायूस गया था, फिर ग़ुस्से में क्रिकेट बैट तोड़ दिया।”

पंजलेश ने कुछ समय पहले टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी पर बने चलचित्र में प्रमुख भूमिका निभाई थी और धोनी का रोल अदा किया था। विशेषकर बच्चों में यह पिक्चर बहुत लोकप्रिय थी। 

मंदेश ने बेटे की ओर देखकर कहा, “बेटा द्रमेश, ऐसा नहीं करते। मैं दूसरी बैट मँगा दूँगा, ठीक है? वही धोनी वाले फोटो वाली।”

द्रमेश ने ग़ुस्से में कहा, “नहीं चाहिए मुझे। मर गया धोनी।”

मंदेश अपने बेटे का उत्तर सुनकर सन्न रह गया। पंजलेश की मौत का उसके बेटे पर भी गहन असर हुआ था। 

मंदेश ने समझाया, “ऐसा नहीं कहते बेटा। धोनी ने इंडिया के लिये कितने मैच जीते हैं। वर्ल्ड कप भी जीता है।”

द्रमेश ने कुछ नहीं कहा। ग़ुस्से में ही अपने मोबाइल को देखता रहा। 

मंदेश ने पत्नी से कहा, “अच्छा सुनो, एक अच्छी ख़बर है। पंजलेश की तहक़ीक़ात कर रहा हूँ मैं।”

बेशामी पर इस बात का कोई असर न होता देख मंदेश ने उसे अधिक जानकारी दी, “पंजलेश के शरीर पर चोट के निशान हैं। उसकी मंगेतर से भी बात करनी है।” 

बेशामी ने खाने के बर्तन समेटे, “तहक़ीक़ात से क्या होने वाला है? उन्होंने तो घोषित कर दिया है कि आत्महत्या का मामला है, तो तहक़ीक़ात किस बात की?”

मंदेश बोला, “साथ ही उसकी एक प्रेमिका का भी पता लगा है।”

बेशामी को विश्वास नहीं था, “प्रेमिका होने से क्या फ़र्क़ पड़ेगा?”

अपनी पत्नी के द्वारा टीवी और अख़बार की ख़बर को आसानी से स्वीकार करते देख मंदेश के हृदय को चोट पहुँची। लेकिन तहक़ीक़ात करने की उसकी भावना और सुदृढ़ हो गई। 

 

♦ ♦ ♦

खाना खाने के पश्चात मंदेश सीधे पंजलेश के घर पहुँचा। बिल्डिंग थी, जिसमें कई फ़्लैट थे। बिल्डिंग के बाहर गार्ड था। मंदेश ने गार्ड से छुटपुट बात की, फिर पूछा, “उस रात पार्टी के बाद सब लोग घर चले गए थे क्या?”

गार्ड ने बताया, “बहुत लोग चले गए, लेकिन चार लोग रुके हुए थे। वे चारों काफ़ी देर बाद गए।”

मंदेश यह सुनकर चौंक गया। उसने गार्ड से प्रश्न किया, “तुमने पुलिस को नहीं बताई यह बात पहले?”

गार्ड ने निराशा से कहा, “उन में से कोई सुनने के लिये ख़ाली नहीं था। ऐसा लगता था कि वो लोग पहले से मन बनाकर आये हैं। और हम तो ग़रीब आदमी हैं। हम लोग ज़बरदस्ती थोड़े ही उनसे कुछ कह सकते हैं।” 

मंदेश ने उत्सुकतावश पूछा, “कौन थे वे चार लोग?”

गार्ड ने बताया, “एक तो साहब जी की मंगेतर ही थी, रूपल मेमसाब। और एक मेमसाहब को अक़्सर रूपल मेमसाब के साथ देखा है – उनका नाम है यसरीन। यसरीन मेमसाब के दोस्त जिलाखान भी थे।”

मंदेश की तहक़ीक़ाती रगों में तेज़ी से ख़ून दौड़ने लगा, “ये तो तीन ही हुए – रूपल, यसरीन और जिलाखान। चौथा कौन था जो देर रात तक रुका हुआ था?”

गार्ड डर गया, “साबजी, मेरा नाम मत लीजियेगा। सिर्फ़ उनका फोटो ही अख़बारों में देखा है। राजनीति से जुड़े हैं वो इसलिए। गंगाधर ढोरे जी का बेटा, वादीश ढोरे।”

मंदेश की आँखें चमक गयीं। शहर की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले गंगाधर ढोरे के बेटे वादीश ढोरे का नाम होने से ही शायद पुलिसवालों में ज़्यादा तफ़्तीश करने की इच्छा नहीं रही।

मंदेश ने फिर पूचा, “बॉडी किसको मिली?”

गार्ड ने बताया, “सबेरे पंजलेश साहब को शूटिंग पर जाना था। मास्क पहनकर शूटिंग कर रहे हैं आजकल। लेकिन वो नहीं पहुँचे, और शायद फोन पर भी जवाब नहीं मिल रहा होगा, तो फ़िल्म स्टूडियो की तरफ़ से कोई देखने आ पहुँचा। उनके अनुसार दरवाज़ा खुला हुआ था। वो अन्दर पहुँचे तो . . .” कहते-कहते गार्ड रुक गया। 

 

♦ ♦ ♦

मंदेश ने फ़ौरन रूपल के घर की ओर प्रस्थान किया। रूपल फ़िल्मों में काम करना चाहती थी, लेकिन उसे सिर्फ़ एक-दो रोल ही मिले थे। चूँकि वह भी एक्टिंग लाइन में थी, इसलिए उसके घर का पता मिलना मुश्किल साबित नहीं हुआ। 
रूपल घर पर ही थी। लॉकडाउन का एक फ़ायदा यह था कि आमतौर पर लोग घर पर ही मिल जाते थे। 

रूपल ने मंदेश से कहा, “पंजलेश अवसाद से प्रभावित था। मुझे तो पहले ही मालूम था कि वो ऐसा कुछ करने वाला है।”

रूपल की सहेली यसरीन भी वहीं बैठी थी। यसरीन ने हामी भरी, “मुझे रूपल ने पहले से ही अवगत करा दिया था कि पंजलेश ऐसा कोई क़दम उठा सकता है।”

मंदेश ने हैरानी दिखाई, “तो आप लोगों ने उसे रोकने की कोशिश क्यों नहीं की?”

दोनों से कोई जवाब न पाकर मंदेश ने उन्हें बताया, “उनके माँ-बाप आये हुए हैं शहर में। मेरी उनसे बातचीत हो चुकी है।”

रूपल उनका नाम सुनकर चिढ़ गयी, “वाहियात औरत है वह।”

यसरीन ने हामी भरी, “बिल्कुल।”

रूपल ने पल्ला झाड़ते हुए कहा, “आप ऐसे ही बेसमय नहीं आ सकते हो। अपॉइंटमेंट लेकर आइयेगा। मुझे और भी काम हैं।”

मंदेश ने उठते हुए कहा, “ठीक है। मुझे आप चारों के फोटो और घर के पते अभी मेसेज कर दीजिये।”

रूपल हड़बड़ गयी, “कौन चार?”

मंदेश, “आप दोनों, जिलाखान और वादीश।”

यसरीन ने शान्ति क़ायम रखते हुए कहा, “मैं अभी कर देती हूँ।”

मंदेश तब तक वहाँ से नहीं गया जब तक चारों के फोटो और घर के पते उसके मोबाइल पर नहीं आ गए।

 

♦ ♦ ♦

दोपहर ढलने के बाद मंदेश ने होटल बृजमोहन में एक प्रेस कांफ़्रेंस का आयोजन करवा दिया, जिसमें उसने पंजलेश के माँ-बाप, ललादेवी और शिववरण, को सामने ला लिया। 

ललादेवी ने मंदेश से कहा, “हमें इसकी ज़रूरत नहीं है।”

मंदेश ने मुस्कुराकर उन्हें टेबल पर बिठाते हुए कहा, “प्रजातंत्र को जगाने का यही तरीक़ा है।”

फोटोग्राफरों ने दोनों की तस्वीरें खींची।

एक व्यक्ति टेबल तक पहुँच आया। उसने कहा, “मैं फ़िल्म स्टूडियो से हूँ। पंजलेश की पिक्चर की शूटिंग हमारे ही स्टूडियो में हो रही थी। स्टूडियो में हम सभी को उसकी मौत से बहुत दुःख हुआ है।” 

मंदेश ने स्टूडियो के व्यक्ति से कहा, “आप लोगों को अपना दुःख प्रकट करने के लिये यही प्रेस कांफ़्रेंस मिली थी।” 

ललादेवी ने स्टूडियो के व्यक्ति से सख़्ती से कहा, “उसकी मौत नहीं हुई है, उसे मारा गया है।” प्रेस वालों ने यह बात नोट कर ली। 

स्टूडियो के व्यक्ति ने खिन्नता से मंदेश से पूछा, “इन सब प्रेस वालों को बुलाने की क्या ज़रूरत थी?”

मंदेश ने दृढ़ता से कहा, “पत्रकारों को ख़बर होनी चाहिए कि पंजलेश के माँ-बाप क्या सोच रहे हैं।”

 

♦ ♦ ♦

प्रेस कांफ़्रेंस के बाद मंदेश, ललादेवी और शिववरण को पंजलेश के फ़्लैट लेकर गया। फ़्लैट में पहले से कोई इंस्पेक्टर राजकर मौजूद थे। स्टूडियो का व्यक्ति भी उनके पीछे-पीछे आ गया। फ़्लैट में दाख़िल होकर ललादेवी से रहा नहीं गया और उसे चक्कर आ गया। मंदेश ने उसे सँभाल लिया और उसे कुर्सी पर बिठाकर आश्वासन दिया, “मैं सँभाल लूँगा। आप चिंता मत करो। यहीं बैठे रहो।”

इंस्पेक्टर राजकर ने मंदेश से पूछा, “माँ-जी ठीक हैं?”

मंदेश ने कहा, “उनकी बेटे की लाश को यहीं से निकाला गया है। आप ही सोचिये, कैसी दशा से गुज़र रहे होंगे दोनों।”

मंदेश ने पंजलेश के बेडरूम को अस्त-व्यस्त देखकर इंस्पेक्टर से प्रश्न किया, “यहाँ कुछ गुत्थमगुत्था हुई लगती है।”

इंस्पेक्टर राजकर अपना विचार प्रकट किया, “पार्टी में पंजलेश सबके साथ था। पार्टी ख़त्म होते ही यहाँ बेडरूम में आ गया, ऐसा लोगों का कहना है। आकर दरवाज़ा बंद कर दिया। दरवाज़े को ज़बरदस्ती खोलने की कोशिश नहीं की गई है। किसी प्रकार के शारीरिक संघर्ष का भी अंदेशा नहीं होता है। जिस प्रकार से पंखे पर फाँसी लगी हुई थी, उससे साफ़ प्रतीत होता है कि उसने स्वयं ही ये काम किया है।”   

पंखा, कमरे के बीचोंबीच, बिस्तर के ऊपर ही था। मंदेश ने बिस्तर के ऊपर लगे पंखे को देखकर इंस्पेक्टर राजकर से पूछा, “पंखे और बिस्तर के बीच इतनी दूरी तो लगती नहीं है कि पंजलेश जैसा व्यक्ति बिना सहारे के लटक सके।”

इंस्पेक्टर राजकर ने ख़ुलासा किया, “दोनों बिस्तरों को हटाकर बीच में जगह बनाई गयी थी। लाश ले जाने के बाद हमी लोगों ने बिस्तर को वापिस व्यवस्थित किया है।”

मंदेश को यह स्पष्टीकरण थोड़ा अटपटा लगा, “तो यह कमरा अस्त-व्यस्त क्यों है?”

इंस्पेक्टर राजकर, “हम लोग और तलाशी ले रहे थे कि कहीं कोई सुराग़ मिल जाए। लेकिन कुछ नहीं मिला। कोई और इस कमरे में नहीं था।”

मंदेश ने फिर पूछा, “आप लोगों ने पार्टी में मौजूद सभी से बातचीत की है?”

इंस्पेक्टर राजकर ने सफ़ाई दी, “सभी के बयान ले लिये गए हैं।”

मंदेश ने थोड़ा दबाव डाला, “आश्चर्य की बात नहीं है कि जो चार लोग पार्टी के बाद भी काफ़ी देर रुके रहे, उनमें से किसी ने इस बात को नोटिस नहीं किया? इतने समय तक वे लोग यहाँ क्या कर रहे थे?”

इंस्पेक्टर राजकर ने रूखेपन से पूछा, “तुम हम लोगों के ऊपर कोई इल्ज़ाम तो लगाने की कोशिश नहीं कर रहे? पूरी मेहनत के साथ काम किया है इस केस में हम लोगों ने।”

मंदेश ने भी कुंठा से कहा, “पंजलेश के शरीर पर गहरे दाग़ हैं, जैसे चोट के या हाथापाई के होते हैं। आपने कैसे उन निशानों पर ध्यान नहीं दिया? किस के साथ हाथापाई हो गई थी पंजलेश की?”

ऊँची आवाज़ें सुनकर ललादेवी कमरे में आ गई। उसे देख दोनों चुप हो गए। 

स्टूडियो के व्यक्ति ने मौक़ा देखकर शिववरण से कहा, “स्टूडियो पूरी आर्थिक मदद करेगा। आप चिंता मत कीजिये।”

शिववरण को इस बात पर और भड़कते देख, मंदेश, माता-पिता को वापिस ले गया और उन्हें उनके होटल तक छोड़ आया। 

मंदेश के जाते ही इंस्पेक्टर राजकर ने किसी को फोन लगाया, “सर ये कोई मंदेश उस एक्टर के माता-पिता को लेकर आ गया है। बहुत आड़े-टेढ़े प्रश्न कर रहा है।” फोन की दूसरी तरफ़ से इंस्पेक्टर राजकर को कुछ आदेश मिले। राजकर ने आदेश ग़ौर से सुन लिये।   

 

♦ ♦ ♦

रात्रि के आठ बजने को आ रहे थे जब मंदेश, माता-पिता को होटल छोड़ रूपल की सहेली यसरीन के घर पहुँचा। यसरीन भी पार्टी के बाद देर रात तक फ़्लैट में ही थी। यसरीन की उम्र पच्चीस बरस की थी, लेकिन उसके पति की उम्र चालीस से ज़्यादा थी। पति, घर के बाहर के आँगन में टहल रहा था। मंदेश ने मुस्कुराकर यसरीन के पति को प्रणाम किया। यसरीन ने मंदेश को घर के भीतर बिठा दिया और व्यग्रता से पूछा, “यहाँ घर तक आने की क्या ज़रूरत थी?”

मंदेश मामले को समझ गया। यसरीन नहीं चाहती थी कि उसके पति को इस बात की भनक पड़े कि वह भी पंजलेश की पार्टी में शामिल थी।

मंदेश ने कुटिल मुस्कान से यसरीन से पूछा, “ये जो बाहर आँगन में टहल रहे हैं, ये आपके पति हैं? उम्र में तो आपसे काफ़ी बड़े लग रहे हैं।”

यसरीन ने चिढ़ते हुए उत्तर दिया, “मशहूर पटकथा लेखक हैं।”

मंदेश ने कुटिल मुस्कान जारी रखते हुए कहा, “आपके पति को देखते हुए समझ में आ जाता है कि आप अपनी ही उम्र के दोस्त जिलाखान और वादीश ढोरे के साथ क्यों पार्टियाँ करती हैं।” 

यसरीन ने उसी चिढ़ के साथ कहा, “आपको मुझसे क्या बात करनी है? आपको तो रूपल से बात करनी है न?”

मंदेश ने उसी भाव से कहा, “रूपल से बात करनी होती तो मैं आपके घर क्यों आता? उसके घर नहीं जाता?”  

यसरीन अपने दोस्तों का नाम सुनकर पहले ही सकपका गई थी। उसने अधीरता से कहा, “मृतकों के माँ-बाप को बेवज़ह भड़काकर, उनके बयान अख़बारों में छपवाकर, आप क्या साबित करने की कोशिश कर रहे हो?”  

मंदेश ने मुस्कुराते हुए ही कहा, “तो आपको भी प्रेस कांफ़्रेंस की भनक लग गयी।”

यसरीन भड़की, “जब औंधे मुँह गिरोगे जो अक़्ल ठिकाने पर आ जायेगी।”

मंदेश ने अपनी बात जारी रखी, “पंजलेश का पूरा कमरा अस्त-व्यस्त पड़ा था।”

यसरीन बोली, “नशे में कोई क्या करता है, इसका भरोसा नहीं।”

मंदेश ने दबाव बनाते हुए हैरानी जताई, “कमरा अस्त-व्यस्त हो गया, आदमी फाँसी पर लटक गया, और आप लोग हॉल में बैठे रहे और ख़बर तक नहीं हुई! आपको यह विचित्र बात नहीं लगती है?”

यसरीन फिर चिढ़ गयी, “आप ऐसी कितनी पार्टियों में गए हैं जहाँ मेज़बान ने खुद को फाँसी लगा दी हो?”

मंदेश ने कहा, “एक भी नहीं।”

यसरीन का स्वर तीखा था, “तो फिर आपको कैसे पता कि कौन सी बात विचित्र है, कौन सी नहीं?”

मंदेश को यसरीन पलट वार करने के मूड में नज़र आई, इसलिए उसने रूपल को लेकर सवाल पूछा, “रूपल . . .”

यसरीन ने बीच में ही मंदेश को काट दिया, “वो ऐसी लड़की नहीं है।”

मंदेश, “आपने तो मुझे बात करने का . . .”

यसरीन ने फिर टोक दिया, “रूपल, पंजलेश से, बेहद मोहब्बत करती थी,” यसरीन उठ खड़ी हुई, जैसे और कुछ कहने के मूड में न हो।

मंदेश बाहर आ गया। यसरीन घर के अन्दर चली गयी तो मंदेश ने मुस्कुराकर आँगन में टहल रहे यसरीन के पटकथा-लेखक पति को देखा और कहा, “पंजलेश की मंगेतर, रूपल, की सहेली है यसरीन। इसीलिए कुछ प्रश्न पूछने आया था।”  

पटकथा-लेखक पति ने भी मुस्कुराते हुए रहस्मयी आवाज़ में कहा, “पंजलेश कोई शादी-वादी नहीं करने वाला था रूपल के साथ। सगाई भी तोड़ दी थी।”

मंदेश को आश्चर्य हुआ, “आपको कैसे मालूम?”

पटकथा-लेखक ने बताया, “रूपल रोते हुए यहाँ भागकर आई थी अपनी सहेली यसरीन के पास। बहुत आँसू बहाए यहाँ रूपल ने। एक-एक शब्द सुना है मैंने।”

 

♦ ♦ ♦

पटकथा-लेखक से विदा ले मंदेश वापिस पंजलेश के फ़्लैट की ओर बढ़ चला। रास्ते में उसके दिमाग़ में यही चल रहा था कि हो सकता है रूपल, पंजलेश के साथ अपना रिश्ता और अपनी सगाई टूटने की बात को सह न सकी हो, और उसने तथा उसके मित्रों ने मिलकर पंजलेश को नींद की गोलियाँ दे दी हों और उसे फाँसी पर लटका दिया हो। या हो सकता है कि चारों ने मिलकर पंजलेश को पार्टी के बाद ज़बरदस्ती क़ाबू में किया हो जिसके चलते न केवल कमरा अस्त-व्यस्त हो गया था, बल्कि पंजलेश के शरीर पर शारीरिक चोट के निशान आ गए थे। 

पंजलेश की बिल्डिंग पर मंदेश ने गार्ड से फ़्लैट की चाबी माँगी।

गार्ड ने बताया, “फ़्लैट खुला ही है साबजी।”

मंदेश चौंक गया, “ऐसे कैसे?”

गार्ड, “रूपल मेमसाब हैं अन्दर।”

मंदेश नाराज़ हो गया, “तुमने उसे अन्दर कैसे जाने दिया?”

गार्ड ने कहा, “साबजी, वे दोनों, पंजलेश सर और रूपल मेमसाब तो पहले यहीं साथ में ही रहते थे, और रूपल मेमसाब के पास आज भी फ़्लैट की चाबी है। हम थोड़े ही उनको रोक सकते हैं।”

बात बराबर थी। मंदेश जल्दी से फ़्लैट पहुँचा। फ़्लैट का दरवाज़ा सिर्फ़ लगा हुआ था, बंद नहीं था। मंदेश दबे पाँव फ़्लैट के भीतर दाख़िल हुआ। रूपल, पंजलेश के बेडरूम वाले कमरे की अलमारी से ख़ूब छानबीन कर कुछ निकाल रही थी।  

मंदेश ने अफ़सोस ज़ाहिर किया, “च. . .च. . .च. . .”

रूपल डर के मारे पलटी। मंदेश को सामने देख वह हैरान हो गयी। फिर उसने हिम्मत से कहा, “यह मेरा भी घर है। आप कैसे वक़्त-बेवक़्त घुसते चले आ रहे हो?”

मंदेश ने स्पष्ट किया, “यह क्राइम सीन है।”

रूपल ने दलील दी, “यह मेरे मंगेतर का घर है," कहकर रूपल अलमारी के तहखानों में से काग़ज़ात निकालने लगी। 

मंदेश अवाक्‌ उसकी बेबाक हरकत को देखता रहा, फिर पूछा, “क्या ढूँढ़ रही हैं आप?”

रूपल बोली, “मेरे और पंजलेश के साइन किये हुए पेपर। अब वो तो इस दुनिया में नहीं है, तो मेरे ही काम के रह गए।”

मंदेश को समझ गया कि आज अगर वो रूपल को रोकेगा, तो कल रूपल का वकील उसे रूपल की साइन की हुई चीज़ें दिलवाकर ही छोड़ेगा। उसने रूपल के हाथों में पेपर्स देखे, “बैंक अकाउंट के दस्तावेज़ हैं?”

रूपल ने खुल्लम खुल्ला कह दिया, “पंजलेश का अकेले का बैंक अकाउंट नहीं है। हमारा जॉइंट अकाउंट है। उसी के काग़ज़ात हैं।” 

मंदेश मुस्कुराया, “और अन्दर से जो हीरे की अँगूठी आपने मेरे आने से पहले अपने पर्स में डाली, वह भी जॉइंट है?”

रूपल बोली, “वह पंजलेश ने मुझे तोहफ़ा देने के लिये ख़रीदी थी।”

मंदेश ने हैरानी दिखाई, “आप तो ज़ेवरात भी समेट रही हैं यहाँ से!”

रूपल ने सफ़ाई दी, “मुझे ही गिफ़्ट देते थे पंजलेश समय-समय पर।”

मंदेश, “ये हीरे-ज़ेवरात हड़पने के लिये तो कहीं तुम चारों ने मिलकर उसको नहीं मार दिया?”

रूपल भड़क गयी, “क्या बकवास कर रहे हैं आप! और आपको क्या लगता है कि वो बहुत अमीर था? कुछ नहीं बचा था उसके पास! उसकी पिछली दो पिक्चर पर रिलीज़ होने से पहले ही दूसरों ने रोक लगवा दी थी। प्रोड्यूसर्स का सारा पैसा डूब गया। बॉलीवुड में एक से एक भरे पड़े हैं जो अपने आप को राजा समझते हैं और दूसरों को ऊपर ही नहीं आने देते हैं। बस थोड़ी-सी बात को लेकर ये ऊँची पहुँच वाले गर्दन दबोच लेते हैं। इसीलिए तो पंजलेश अवसाद ग्रस्त था। मेरे इन दो टके के ज़वाहरातों के बदले उनको धर-दबोचने की हिम्मत दिखाओ।” रूपल ने अलमारी को थोड़ा और तलाशा, फिर अलमारी बंद कर, फ़ौरन तेज़ क़दमों से वहाँ से चली गयी।

 

♦ ♦ ♦

मंदेश, पंजलेश की बिल्डिंग से निकलकर कुछ सोचता हुआ पैदल जा रहा था। उस के विचार मंथन में बाधा तब पड़ी जब रात्रि के अँधेरे में किसी ने ज़ोर से उसपर प्रहार किया। लात-घूसों की बारिश हुई, फिर एक तेज़-तर्रार आवाज़ ने उसको चेतावनी दी, “एक्टर की मौत की तफ़्तीश बंद कर दे। मामले को यहीं छोड़ दे।”

मंदेश ने अँधेरे में देखने का प्रयास किया। उसे ठीक से कुछ दिखा नहीं। मारनेवाले गुंडे अपना काम करके चले गए। मंदेश ने ख़ुद को सँभाला और टैक्सी पकड़कर घर पहुँचा। 

मंदेश की पत्नी बेशामी ने अपने पति की हालत देखी तो उस पर जैसे पहाड़ गिर पड़ा। रोने की सी हालत से उसने अपने पति के घावों पर गर्म हल्दी का सेक किया, डेटॉल लगाकर मरहम-पट्टी की। उसने अपने पति को समझाया, “इन सब बेकार के पचड़ों में पड़ कर क्या मिलेगा? उस एक्टर ने आत्महत्या की या उसका ख़ून हुआ, इससे हमको क्या लेना-देना? तुम्हें कुछ हो गया तो हमारे बेटे द्रमेश का क्या होगा? कुछ तो सोचो।”

 

♦ ♦ ♦

रात भर आराम करने के बाद, अगले दिन बीवी की याचना करती हुई चिंताभरी निगाहों के बावजूद मंदेश अपने काम पर निकल पड़ा। अब तो वह इस गुत्थी को सुलझाकर ही रहेगा। जिस महिला ने पंजलेश के जन्मदिन पर उसको लॉकेट भेंट किया था, ज़ाहिर था कि वह पंजलेश की प्रेमिका थी। जौहरी के दुकान पर विक्रेत्री ने उस महिला का पता मंदेश को दिया था। मंदेश ने तुरंत उस ओर रुख़ किया। 

काग़ज़ पर लिखे पते पर पहुँच कर मंदेश के होश उड़ गए। पते पर स्थित एक विशाल घर था। घर, जाने माने प्रोडक्शन हाउस के मालिक, वीर्यान चोपड़ा का था। महिला, उसकी धर्मपत्नी मंजीली चोपड़ा थी। वैसे तो वीर्यान चोपड़ा की उम्र सत्तर बरस की थी, लेकिन मंजीली ने अभी चालीस भी पार नहीं किया था। पैतीस-छतीस बरस की महिला, मंदेश जैसे युवा अभिनेता की प्रेमिका! यह सोचकर ही मंदेश का दिमाग़ चकरा गया। कहीं इस महिला से प्रेम के चलते तो पंजलेश ने रूपल के साथ अपनी सगाई नहीं तोड़ दी थी? 

अचानक लोहे के बड़े मुख्य दरवाज़े से दो व्यक्ति बाहर निकले। मंदेश ने तुरंत फोटो के बल पर उन्हें पहचान लिया। जिलाखान और वादीश! चोपड़ा परिवार से इनकी दोस्ती थी! उन दोनों के चले जाने के बाद मंदेश ने घर के बाहर पहरा देते सिक्यूरिटी गार्ड से पूछा, “मंजीली मेमसाहब घर पर हैं?”  

सिक्यूरिटी ने बताया, “हैं तो, लेकिन उनकी तबियत ख़राब है। किसी से नहीं मिल सकती हैं।”

मंदेश ने अपना परिचय-पत्र दिखाकर ज़बरदस्ती सिक्यूरिटी को मंजीली को इण्टरकॉम करने के लिये कहा। मंजीली ने इजाज़त दे दी। कुछ ही पलों में मंदेश, मंजीली के कक्ष में हाज़िर हुआ। मंजीली का रो-रोकर बुरा हाल था। 

मंदेश ने परिचय देने के बाद पूछा, “ये जो दो युवक अभी गए यहाँ से, जिलाखान और वादीश ढोरे, इनको आप कैसे जानती हैं?” 

मंजीली ने ग़मगीन आँखों से असमंजस से पूछा, “कौन? मैं नहीं जानती ये लोग कौन हैं।”

मंदेश अचरज में पड़ गया। साफ़ था कि दोनों युवक वीर्यान चोपड़ा की पहचान के थे। मंदेश ने धीमी आवाज़ में कहा, “आपके पति को आपके पंजलेश के साथ चल रहे अफ़ेयर की भनक पड़ गयी थी?”

मंजीली ने ग़ौर से मंदेश को निहारा, फिर दुखी स्वर में कहा, “नहीं। लेकिन किसी जासूस को मेरे पीछे लगाया हो तो कह नहीं सकते। मैंने भी ज़्यादा एहतियात नहीं बरती।”

मंदेश ने फिर पूछा, “एक बात पूछता हूँ। बुरा मत मानियेगा। वीर्यान की पहली बीवी कहाँ है?”

मंजीली ने बताया, “वीर्यान की यह तीसरी शादी है। पहली बीवी कार एक्सीडेंट में मर गयी। दूसरी ने खंडाला में पर्वत से कूदकर आत्महत्या कर ली।”

मंदेश के शरीर पर रोंगटे खड़े हो गए। वीर्यान चोपड़ा एक असाधारण व्यक्तित्व वाला आदमी नज़र आ रहा था। 

मंदेश ने मंजीली को सलाह दी, “आपकी भलाई के लिये कह रहा हूँ। जितना जल्दी हो सके, कहीं और रहने का इंतज़ाम कर लीजिये।”

मंजीली हथप्रभ थी। मंदेश जैसे ही मंजीली से विदा लेकर घर से निकलने वाली सीढ़ियों तक पहुँचा, उसका सामना वीर्यान चोपड़ा से हो गया। 

वीर्यान चोपड़ा ने ग़ुस्से में पूछा, “कौन हो तुम? तुमको अन्दर किसने आने दिया?”

मंदेश ने अपना परिचय दिया, “आपकी बीवी से कुछ पूछना था।” 

वीर्यान चोपड़ा ने कड़क आवाज़ में कहा, “वो किसी से मिलने की हालत में नहीं है,” फिर वीर्यान ने सख़्ती से कहा, “लगता है कल रात की पिटाई का तुम्हारे ऊपर कोई असर नहीं हुआ। तुमको अपनी जान की परवाह नहीं है क्या?”

मंदेश के रोंगटे खड़े हो गए। तो कल रात को जिन गुंडों ने उसे पीटा था, वे वीर्यान के ही थे!

वीर्यान चोपड़ा ने कठोरता से कहा, “गंगाधर ढोरे जी के लड़के का नाम भी तुम घसीट रहे हो। बहुत ख़तरनाक खेल खेल रहे हो तुम। आज के बाद एक दिन भी ज़िंदा नहीं बचोगे।”

मंदेश ने हिम्मत से उत्तर दिया, “ढोरे जी से आपके संबंध तो पता चल ही गए। पहले मुझे इस केस में ड्रग्स का मामला लगता था। लेकिन यह ड्रग्स का मामला नहीं है। अभी अभी ढोरे जी के लड़के को इस घर से बाहर जाते देखा है। साथ में जिलाखान भी था, और ये दोनों देर रात तक पार्टी ख़त्म होने के बाद भी पंजलेश के फ़्लैट में मौजूद थे। मुझे सब समझ आ 
रहा है अब।”

वीर्यान गुर्राया, “क्या ख़ाक समझ रहा है? कुछ नहीं समझ रहा है!”

मंदेश को अब और हिम्मत बँध गयी, “पहली बीवी का कार एक्सीडेंट, दूसरी पर्वत से ऐसे कैसे नीचे गिर गयी, और अब तीसरी के चाल-चलन पर शक होने से उसके संभावित प्रेमी को . . .”

वीर्यान, मंदेश के एक़दम पास पहुँच कर मंदेश की आँखों में आँखें डालकर उसे घूरता रहा। कुछ देर हॉल में मौन रहा, फिर वीर्यान ने मंदेश से कहा, “अगर तुम्हारी बीवी किसी ऐसे युवक के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो जिसकी उम्र अभी तीस भी नहीं हुई है, और पूरे समाज में तुम्हारा मज़ाक उड़ रहा हो तो तुम क्या करोगे?” 

मंदेश ने दृढ़ता से कहा, “न तो मैं अपनी बीवी की हत्या करूँगा, न ही उसके प्रेमी को मरवाऊँगा।”

वीर्यान अभी भी अडिग था, “सबका अपना अपना तरीक़ा होता है सोचने का। तुमको मालूम है चोपड़ा प्रोडक्शन हाउस की कितनी साख है? और वो दो टके का कल पैदा हुआ छोकरा . . . उसकी हिम्मत कैसे हुई कि चोपड़ा परिवार की औरत पर नज़र डाले?”

मंदेश वीर्यान के ग़ुस्से का फ़ायदा उठा रहा था, “लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि गुंडों से उसको मरवा दिया जाए।”

वीर्यान ने सफ़ाई दी, “जिलाखान और वादीश कोई गुंडे नहीं हैं। सभ्य खानदान के हैं दोनों।”

मंदेश ने फिर उकसाया, “उनको आपने बताया कि क्या करना चाहिए?”

वीर्यान बकता चला गया, “दोनों ख़ुद ही समझदार हैं। मुझे कुछ बताने की ज़रूरत नहीं पड़ी। अपना मौक़ा उन्होंने ख़ुद ही निकाल लिया।”

मंदेश ने भड़काया, “आप को यह बात सबके सामने खुलकर कहनी चाहिए।”

वीर्यान हँस दिया, “बेवकूफ़ आदमी लगते हो तुम। किसी भी चीज़ को कोई साबित नहीं कर सकता है। और अगर तुमने तहक़ीक़ात नहीं छोड़ी, तो दो ही दिन में तुम्हारा तबादला हो जाएगा। तहक़ीक़ात करके भी कुछ नहीं मिलेगा। आत्महत्या का केस घोषित हो चुका है।”

मंदेश ने निडरता से वीर्यान की आँखों में देखकर कहा, “लेकिन हम दोनों को तो असलियत मालूम है।”

वीर्यान ने कट्टरता से बाहर का रास्ता दिखाते हुए मंदेश को रवाना कर दिया। 

 

♦ ♦ ♦

वीर्यान चोपड़ा के विशाल घर से बाहर आते ही मंदेश ने पुंडे को गणेश भोजनालय पर बुलाया जहाँ उसने पुंडे से पहले मुलाक़ात की थी। सारा ब्यौरा देने के उपरान्त कहा, “मेरी तफ़्तीश पूरी हो चुकी है, अब तुम्हारे पूरे डिपार्टमेंट के हाथों में है, किसे हिरासत में लेकर पूछताछ करनी है। और मंजीली चोपड़ा की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी अब तुम्हारी है।”

पुंडे ने पूरी बात सुन ली, फिर मायूस होकर कहा, “लेकिन सबूत नहीं है।”

मंदेश ने अपनी शर्ट के पॉकेट से मोबाइल निकाला और पुंडे की ओर बढ़ाते हुए कहा, “मैंने मंजीली से मिलने से पहले मोबाइल रिकॉर्डिंग शुरू कर दी थी। मेरा वीर्यान चोपड़ा के साथ हुआ सम्पूर्ण वार्तालाप इसमें रिकॉर्ड है।” 

पुंडे ने हैरतंगेज़ होकर मोबाइल की रिकॉर्डिंग सुनी।

अगले कुछ दिनों में जिलाखान और वादीश ढोरे से सख़्ती के साथ पूछताछ की गयी। दोनों ने सच उगल दिया। रूपल और यसरीन को भी इस बात की ख़बर थी, लेकिन हत्या में वे दोनों शामिल नहीं थे। फिर भी पुलिस ने उन दोनों को इसलिए अन्दर ले लिया कि दोनों को सारे षड्यंत्र की जानकारी थी। वीर्यान चोपड़ा को भी हिरासत में ले लिया गया।    

इंस्पेक्टर राजकर, जो पंजलेश का केस देख रहा था, तथा इस मौत को आत्महत्या घोषित करने में जिसका प्रमुख हाथ था, को निलंबित कर दिया गया।     

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

......गिलहरी
|

सारे बच्चों से आगे न दौड़ो तो आँखों के सामने…

...और सत्संग चलता रहा
|

"संत सतगुरु इस धरती पर भगवान हैं। वे…

 जिज्ञासा
|

सुबह-सुबह अख़बार खोलते ही निधन वाले कालम…

 बेशर्म
|

थियेटर से बाहर निकलते ही, पूर्णिमा की नज़र…

टिप्पणियाँ

पाण्डेय सरिता 2021/09/16 11:14 AM

संवेदनशील विषय पर गहन अभिव्यक्ति

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

एकांकी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं