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अधूरापन

कहानी मेरी वही अधूरी सी,       
पूरी हो कैसे, है ही अधूरी सी।  
 
उम्र तो मिली थी इतनी लम्बी,
ज़िन्दगी कटी यूँ ही अधूरी सी। 
 
राह तो थी सीधी-सादी बहुत,  
मगर मंज़िल मिली अधूरी सी।       
 
चाहत थी इक छोटी-मोटी सी,
जाने फिर क्यों रही अधूरी सी।      
 
बारात आई मगर डोली न उठी,
माँग बस भरी रह गई अधूरी सी।      
 
न वो ब्याहता, न ही अब विधवा,
मर्ज़ी विधाता की यही अधूरी सी।     
 
कहने को तो बहुत कुछ था मगर
बात फिर रह गई वहीं अधूरी सी।      
 
चार लोग तक न आये काँधा देने,
रूख़्सती ग़रीब की हुई अधूरी सी।       
 
रब ने यूँ तो नवाज़ा है हर सुख से,
बख़्श दे ख़ुशी भी कहीं अधूरी सी।
 
रोशन हो रहा हर घर दीवाली पर,
यहाँ मगर रोशनी वही अधूरी सी।      
 
मौत आज आई या इस पल आई,
तैयारी ’मधु’ की फिर भी अधूरी सी।   

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