अगर उन के इशारे इस क़दर मुबहम नहीं होंगे
शायरी | ग़ज़ल स्व. अखिल भंडारी15 Nov 2020 (अंक: 169, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
अगर उन के इशारे इस क़दर मुबहम नहीं होंगे
हमारी गुफ़्तगू में भी ये पेच-ओ-ख़म नहीं होंगे
मुबहम = अस्पष्ट, भ्रमित करने वाले
किसी से कुछ नहीं कहना हमेशा सोचते रहना
यूँ ही बस सोचने से तो मसाइल कम नहीं होंगे
पुराने दोस्त हैं मेरे मैं इन से ख़ूब वाकिफ़ हूँ
शरीक-ए-ऐश तो होंगे शरीक-ए-ग़म नहीं होंगे
मसीहा हो तो करते क्यों नहीं तुम मोजज़ा कोई
फ़क़त हर्फ़-ए-तसल्ली तो मेरा मरहम नहीं होंगे
हँसी में ग़म छुपाने का हुनर मालूम है हम को
किसी सूरत भरी महफ़िल में चश्म-ए-नम नहीं होंगे
हुई जाती है लौ मद्धम चराग़-ए-ज़िंदगानी की
दिये उम्मीद के लेकिन कभी मद्धम नहीं होंगे
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