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अगला जन्म

सड़क के किनारे बनी मज़दूर बस्ती में वह अपने टूटे-फूटे झोंपड़े में बच्चों को बहला रही थी। भोजन के नाम पर बर्तन में चावल के चंद दाने थे। सोचती थी बातों के बहलाव-फुसलाव के साथ परोसे गए चावल उनका पेट भरने में कामयाब हो जाएंगे। इतने में बड़ा बेटा बोला, "माँ, क्या अगला जन्म भी होता है?"

वह बोली, "हाँ बेटा, सुना तो है, क्यों?

बेटा बोला, " फिर तो मैं भगवान से प्रार्थना करूँगा कि अगले जन्म में मुझे इंसान नहीं, सामने वाले बंगले का कुत्ता बनाना। पता है माँ, वह कुत्ता रोज़ दूध-बिस्कुट, अंडे-ब्रेड-माँस खाता है। रोज़ महंगे शैम्पू से नहाता है और कार में भी घूमता है। और तो और बीमार पड़ जाने पर डॉक्टर उसे खुद देखने आते हैं। कुत्ता होकर कैसी ठाठ की ज़िन्दगी है न उसकी?"

उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं थी। कानों में बच्चे के शब्द भाँय-भाँय कर रहे थे। उसे लगा मानो सामने बैठा बच्चा अचानक कुत्ते की शक्ल का हो गया और भौं-भौं करता हुआ सामने वाले बंगले में घुस गया।

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