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अजनबी की पुकार

अभी रात बहुत बाक़ी थी। घर में अभी सभी सोये हुए थे। रात के बारह बजे थे; नींद आते आते रजनी की नींद खुल गई। उन के मकान के बग़ल से ही कोई अजनबी आवाज़ पुकार रही थी, "रजनी रजनी कुछ दया करो। आज रात मुझे यहाँ गुज़ारने दो। कल मैं यहाँ से चली जाऊँगी. . .”

आवाज़ अजनबीव महिला की थी। नाम लेकर ही रजनी को पुकार रही थी। रजनी को लगा मेरी जान-पहचान की कोई दुखिया पुकार रही है। 

"अजी सुनिए तो!" साथ सोये हुए अपने पति माधव खर्बन्दा को रजनी ने कहा। 

"क्या है?"

"बाहर कोई पुकार रहा है। जाकर देखिए न . . .!" 

"छोड़ो यह सब। नींद में परेशान मत करो।" 

"फिर भी देखिए न।" 

"हम शहर के मध्य में हैं। यहाँ सिर्फ़ हमारा ही मकान है– यह बात तो नहीं। यहाँ तो रात-दिन जो भी चाहे आ सकता है। सही आदमी ही आ गया हो यह भी तो हम यक़ीन से नहीं कह सकते। भिखारी, डाकू, बहुरूपिया कोई भी आ सकता है। अजनबी बन कर बहुत हरकत करते हैं। समय बहुत बुरा है। बहाना बनाकर घर में घुसते हैं फिर रफूचक्कर हो जाते हैं। समझा करो। उन सब की देख-भाल का ठेका हमने ले रखा है क्या! अभी सो जाओ।" खर्बन्दा जी थोड़ा क्रोधित लग रहे थे।

"नहीं नहीं यह बात नहीं है। मेरा मन कह रहा है कि कोई बहुत दुखियारी पुकार रही है।"

"यह सब छोड़ो चैन से सो जाओ और सोने दो," कहते हुए खर्बन्दा जी ने करवट ले ली और सो गए। रजनी को बहुत देर तक नींद नहीं आई। और वह अकेली कर भी क्या सकती थी।

बहुत देर बाद रजनी सो गई। पति तो कब के खर्राटे ले रहे थे।

भोर होते ही मुहल्ले में बहुत हड़कंप मच गया। खर्बन्दा जी के घर के सामने महिला की लाश पड़ी थी। बाद में पता चला खर्बन्दा जी की नज़दीकी बिरादरी की महिला का शव था। 

सुबह-सुबह खर्बन्दा जी को पूछताछ के लिए पुलिस ले गई। 

रजनी घबराई हुई थी और सोच रही थी, "काश उस महिला की पुकार रात में सुनी होती तो यह मुसीबत न आती!" 

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