अल्पदृष्टि
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कुँवर दिनेश15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
मानसून का सघन शून्य,
आर्द्र अश्माएँ,
धरा की ओर
लुपलुपाता, आँख मिचकाता सूर्य,
धुँधकार में धँसता―शिमला।
मैं
खड़ा ऐकिक
नगर के नुक्कड़ से
देखता हूँ ताज़ा―
ताज़ा धुँधेरी―
उमड़ती घुमड़ती हुई
घाटी की दरारों में से,
परिवेश का आच्छादन करती,
प्रत्येक वस्तु को ढाँपती;
बचा रहता हूँ मैं
मेरी एकलता में
एकमात्र मैं
अस्तित्व में,
एक हस्ती
लुप्त होते नगर में।
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