अंतहीन यात्राएँ
काव्य साहित्य | कविता डॉ. नवीन दवे मनावत15 May 2019
अंतहीन यात्राएँ
रही है हमेशा जीवन की
जहाँ आदमी लड़खड़ाता है
बुझौवल बना
अन्तर्द्वन्द्व में
ख़ुद की हत्या कर देता है।
विखंडित सा हर समय
न जाने कितनी ही
रहस्यपरक आदतों को
समेटता है
और खोजता भी है
जीवन तंतु,
केवल ख़ुशमय जीवन के लिये ।
हर वक़्त सच्ची-
परिघटनाओं की परिधि में
जीवन को पाना चाहता है
(ख़ुश होने के लिये उपाय करता है)
अंधाधुंध नक़ल कर
नये जीवन की
अप्रहत जिजीविषाओं को
अपने प्रति उलाहना
प्राप्त करते हुए
होमाग्नि में,
हवि बनने को तत्पर रहता है।
उदास प्रार्थना हो!
या जीवन की प्रतीक्षारत
महत्वकांक्षा
या अनैतिक
कविता की आत्मकथा
जिसमें हिम्मत नहीं जीवनी बनने की
बस एक साहस है।
जीवन निर्झर
की तरह बहता है/ बहना चाहता है
एक स्नेह की
बात करना चाहता है
पर घेर देती है
बादलों की वह
उदासियाँ
जिससे वह
थोड़ा विचलित हो जाता है
(अपनी जिज्ञासाओं के साथ)
हर वक़्त एक
शुकुन की तलाश में
अंतहीन यात्राएँ करता है
आदमी......
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टिप्पणियाँ
Mahipal bishnoi 2019/10/13 10:00 AM
V nice
Kamlesh kumar 2019/05/28 02:27 PM
Super
Nãrpãt Dewãsï 2019/05/16 12:58 AM
शानदार गुरुजी
Vikram Choudhary VC 2019/05/11 02:45 PM
Super guruji
Devdatt 2019/05/04 04:16 AM
Super
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Manajeet Pooniya 2021/10/07 07:32 PM
Super guru dev