अराजकता
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मोहन सिंह यादव15 Nov 2019
किस रावन की गर्दन काटूँ, किसकी भुजा उखाड़ूँ।
घर–घर रावन, पग–पग लंका।
इतने राम कहाँ से लाऊँ ।1।
किस कालिया को नाथूँ, किस कंस को मारूँ।
घर–घर विषधर, पग–पग अजगर।
इतने कृष्ण कहाँ से लाऊँ ।2।
किस पापी को मारूँ, किस को कारा डालूँ।
घर–घर पाप, पग–पग स्वार्थ।
इतने तारक कहाँ से लाऊँ ।3।
किस कपूत को डाटूँ, किस को देश–निकालूँ।
घर–घर कपूत, पग–पग सबूत।
इतने श्रवण कहाँ से लाऊँ ।4।
किस हिंसक को हराऊँ, किस कामी को डराऊँ।
घर–घर हिंसा, पल-पल काम।
इतने बुद्ध कहाँ से लाऊँ ।5।
कितने अपराध गिनाऊँ, कितने अन्याय बताऊँ।
क्षण–क्षण शोषण, दिन–दिन दोहन।
इतने भीम कहाँ से लाऊँ ।6।
कितने भ्रष्टाचार भगाऊँ, कितने रिश्वतखोर डुबाऊँ।
मन–मन दूषन, धन–धन पूजन।
इतने सुजन कहाँ से लाऊँ ।7।
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