असफलता
काव्य साहित्य | कविता निलेश जोशी 'विनायका'1 Dec 2020
असफलता तुम्हारा दर्पण है इसमें ख़ुद को देखो तुम
कहाँ कमी थी मुझ में ख़ुद से पूछो परखो तुम
इस आँधी से संघर्ष करो मत डर कर भागो तुम
जब तक इसकी हार न हो सुख चैन को त्यागो तुम।
कटु अनुभव भी आएँगे इनसे मुख ना मोड़ो तुम
असफलता का स्वाद चखो पर आस कभी ना छोड़ो तुम
लाखों फूल खिलते बाग़ों में और लाखों झड़ते होंगे
इनसे कई गुना फल तो काँटों में भी फलते होंगे।
टूटने के भय से क्या कलश मिट्टी के बन सकते
गिरने का भय पाल हृदय में क्या हम भी थे चल सकते
असफलता हवा का झोंका है इसमें उड़ न जाओ तुम
अंगद पाँव धरो धरती पर और अचल हो जाओ तुम।
लहरों के तांडव को साहिल निर्भय हो सह जाता है
एक अकेली धारा में तिनका डर कर बह जाता है
हिम्मत हार गया मांझी तो नौका पार नहीं होती
असफलता के भय से तो देहरी घर की भी पार नहीं होती।
निराश नहीं होकर जो प्राणी कोशिश फिर से करता है
कहाँ कमी सुधार सकूँ मैं हर गुंजाइश पूरी करता है
हार से अपनी सबक़ सीख कर इतिहास नहीं दोहराता है
मंज़िल मिल जाती उसको गुमराह नहीं हो पाता है।
असफलताएँ रोज़ हमें सबक़ नया सिखा देती
विचलित होते मन में भी नव उत्साह जगा देती
एक विफलता से ख़ुद को कमज़ोर न इतना समझो तुम
ध्वस्त करो भ्रम की दीवारें और सफल कहलाओ तुम।
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