अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

असफलता

असफलता तुम्हारा दर्पण है इसमें ख़ुद को देखो तुम
कहाँ कमी थी मुझ में ख़ुद से पूछो परखो तुम
इस आँधी से संघर्ष करो मत डर कर भागो तुम
जब तक इसकी हार न हो सुख चैन को त्यागो तुम।
 
कटु अनुभव भी आएँगे इनसे मुख ना मोड़ो तुम
असफलता का स्वाद चखो पर आस कभी ना छोड़ो तुम
लाखों फूल खिलते बाग़ों में और लाखों झड़ते होंगे
इनसे कई गुना फल तो काँटों में भी फलते होंगे।
 
टूटने के भय से क्या कलश मिट्टी के बन सकते
गिरने का भय पाल हृदय में क्या हम भी थे चल सकते
असफलता हवा का झोंका है इसमें उड़ न जाओ तुम
अंगद पाँव धरो धरती पर और अचल हो जाओ तुम।
 
लहरों के तांडव को साहिल निर्भय हो सह जाता है
एक अकेली धारा में तिनका डर कर बह जाता है
हिम्मत हार गया मांझी तो नौका पार नहीं होती
असफलता के भय से तो देहरी घर की भी पार नहीं होती।
 
निराश नहीं होकर जो प्राणी कोशिश फिर से करता है
कहाँ कमी सुधार सकूँ मैं हर गुंजाइश पूरी करता है
हार से अपनी सबक़ सीख कर इतिहास नहीं दोहराता है
मंज़िल मिल जाती उसको गुमराह नहीं हो पाता है।
 
असफलताएँ रोज़ हमें सबक़ नया सिखा देती
विचलित होते मन में भी नव उत्साह जगा देती
एक विफलता से ख़ुद को कमज़ोर न इतना समझो तुम
ध्वस्त करो भ्रम की दीवारें और सफल कहलाओ तुम।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

कविता - हाइकु

कहानी

बाल साहित्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं