आशा की खिड़की
काव्य साहित्य | कविता नीतू झा1 Aug 2021 (अंक: 186, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
हर स्त्री के अंदर
एक आशा की
खिड़की होती है
जिससे कभी
ताक झाँक लेती है वो
देख लेती है
स्वप्न ख़ुशियों के
उड़ लेती है
उस खिड़की के बाहर
स्वप्न के आसमान में..
फिर आ जाती है
उस खिड़की के भीतर
अपने सीमा में
जी भर कर रो लेती है
सिसकियाँ भरते हुए..
फिर,
एक दृढ़ संकल्प ले
पोंछ लेती है
अपने सारे आँसू
और निकल जाती है
हँसता हुआ चेहरा लेकर
सब को ख़ुश करने . . .
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं