अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अस्त होता सूरज

दुनिया का अजीब दस्तूर है
उगते सूरज को सब नमन करते हैं
उसे रोज़ सुबह अर्घ्य भी देते हैं।
क्योंकि उस से हमें ये आशा रहती है
कि वह हमें ऊर्जा और प्रकाश देता है।
जबकि अस्त होते सूरज को
कभी किसी ने अर्घ्य नहीं दिया;
क्योंकि उस समय ना तो उसके पास तेज
होता है और ना ही ऊर्जा।
अस्त होते सूरज की भी अपनी गरिमा है,
उसने सम्पूर्ण प्रकृति को प्रकाशित किया है,
समस्त जीव-जंतुओं को ऊर्जा दी है।
आज अगर उसका तेज क्षीण हो भी गया तो क्या?
उस अस्त होते सूरज के अपने जीवन काल में
कई पुण्य कर्म हैं,
जिन्हें हम भुला नहीं सकते।
लेकिन ये दुनिया बड़ी स्वार्थी है
उदित होते शैशव को तो ख़ूब स्नेह देती है
किन्तु ढलते बुढ़ापे को एक नज़र भी नहीं देखती।
पर अस्त होते सूरज का महत्त्व
कभी कम नहीं होगा;
जब भी कोई सूरज उदय होगा
तो उसे जीने का तजुर्बा
अस्त होते सूरज से ही लेना पड़ेगा;
तभी कोई उदित होता सूरज
इस दुनिया को प्रकाशित कर पाएगा।
अस्त होते सूरज!
तू आशा कभी मत छोड़ना
तेरा महत्त्व भी कभी कम न होगा
तेरे आगे भी जहां नम होगा ।
तेरे लिए कोई अर्घ्य ना भी दे तो क्या ग़म?
मेरे जैसा बेचारा तुझे निहारता रहेगा
और नतमस्तक होता रहेगा।
जब-जब जीवन कठिन होगा
तब-तब तू याद आयेगा
जीवन तुझसे ही सीख लेकर
आशान्वित होता रहेगा।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

लघुकथा

कहानी

सामाजिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. प्रेम का पुरोधा