औघड़ दानी
काव्य साहित्य | कविता महेन्द्र देवांगन माटी1 Oct 2020 (अंक: 166, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
भोले बाबा औघड़ दानी, जटा विराजे गंगा रानी ।
नाग गले में डाले घूमे , मस्ती से वह दिनभर झूमे॥
कानों में हैं बिच्छी बाला, हाथ गले में पहने माला ।
भूत प्रेत सँग नाचे गाये, नेत्र बंद कर धुनी रमाये॥
द्वार तुम्हारे जो भी आते, खाली हाथ न वापस जाते।
माँगो जो भी वर वह देते, नहीं किसी से कुछ भी लेते॥
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