अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अवसाद में मेरा टामी

टामी नाम पढ़ते-देखते ही आप समझ गए होंगे कि अवसाद का मारा कौन है? आपके सूँघने की शक्ति को भगवान बरक़रार रखे या कहूँ कि मेरे टामी से सौ गुना तो कम-से-कम ज़्यादा रखे!

उस दिन मार्निंग-वाक को निकला था, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए टामी लगभग मीटर भर के पट्टे को लिए मुझे खींच रहा था। इस नज़ारे के बावजूद दुबे जी जाने कैसे जान गए, "क्या बात है यादव जी आज आपका टामी कुछ सुस्त नजर आ रहा है....?"

मैंने दुबे जी को कहा, "आपने सही पहचाना है।"

वे कहने लगे, "पहचानेंगे कैसे नहीं...? इसी अल्सेशियन नस्ल का हमारे पास भी था। बहुत अग्रेसिव होता है। आपको अभी तक तो दौड़ा डालता, ये तो महज़ खींच रहा है...?"

हमने कहा, "नहीं दुबे जी ऐसी बात नहीं, दरअसल, कमान सम्हालने वाले पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। मैं अपने पोतों को साथ ले के चलूँ तो ये और कम रफ़्तार में चलता है। आप तो ये जानते होंगे, लगाम वाली बात, अपने सिस्टम पर भी लागू होती है, देखा न...! विपक्ष कितनी भी हाय-तौबा मचा ले, दौड़म-भाग कर ले, सत्ता वाले उसकी चाल क्या... एक दम धीमी नहीं कर देते...?"

दुबे ने कहा, "यादव जी आप कहाँ पालिटिक्स में ला पटके... वहाँ तो हर चीज़ अप्रत्याशित के तौर पर सत्ता के फेवर में ही जाना जाता है। ख़ैर... मैं कह रहा था, इसको आप ख़ुराक तो सही दे रहे हैं...?"

दुबे जी ने अपरोक्ष रूप से मेरे बारे में, कंजूस होने की धारणा को रू-ब-रू उद्घाटित करने जैसा दुस्साहस कर लिया...?

मैंने कहा, "और क्या ख़ुराक दें...? सबेरे दो अंडे, आधा किलो दूध, दोपहर रोटियाँ, शाम मुर्गा-मटन के बिना ये कुछ सूँघता-छूता नहीं। इतने ख़र्चे में तो गय्या सुबह-शाम दो किलो दूध दे देवे...!
आप इसके आलसी होने की जड़ तक जाने में इंटरेस्टेड हैं तो जानिये, जब से करोना-वार हुआ है, ये टीवी देख-देख के अलसाया हुआ रहता है। घर के मेंबर जो इससे खेलते थे, धीरे-धीरे डिस्टेंसिंग मेंटेन करने लगे। पहले तो इसने एकबारगी, सभी के मास्क वाले चेहरों को नोचने-खसोटने का उपक्रम कर लिया। सबकी डाँट मिली तो आजकल अभ्यस्त सा बिहेव करता है। 

"हाँ तो दुबे जी, मैं कह रहा था, टीवी समाचारों में करोना इतनी बार सुन चुका है, इतने मास्क वाले चेहरों से इसका वास्ता पड़ा है कि जानवर हो के भी ये शॉक्ड फ़ील करता है। हम लोगों का मानना है, इसी के चलते इसे अपने खाने में अचानक अरुचि पैदा हो गई।

"अब न ये दरवाज़े की खड़क से चौंकता है, न किसी अजनबी के बाहर से आवाज़ लगाये जाने पर पर भौंकता है।

"मुझे लगता है, इसमें से कुत्त्वत के तमाम तत्व लापता हो गए हैं। हम लोग बस पदार्थ की अविनाशी थ्योरी पर कि जीव का कभी नाश नहीं होता, एक उम्मीद पाले बैठे हैं, शायद बीते दिन इनके भी, हमारे भी लौट आयें...?

"मैं जो इसे सुबह-सुबह इतना टहला न दूँ तो ये पागल ना हो जाए। दुबे जी आप तो जानते हैं पागल कुत्ते और पागल हाथी कितने हिंसक हो जाते हैं...?"

"यादव जी, आपने पागल इंसान को नहीं जोड़ा!" 

वे वार्ता को लाईट मूड में मोड़ने की फ़िराक़ में बोल के ...हो.. हो.. हो... गुँजा रहे थे; तभी वह अपने बाजू से गुज़रने वाले किसी अन्य मार्निंग वाकर से मुख़ातिब हो लिए।

मुझे ग़ुस्सा तो दुबे पर निकालना था,  प्रकट में मैंने टामी को ढेर गालियाँ दे डालीं, "कहाँ-कहाँ मुँह मारता है...चल इधर...? सीधे... एकदम सीध..."

टामी अपनी ग़लती न होने के एहसास को जानता-समझता है। कई बार घर में दूध वाले, सब्ज़ी वालों पर मैं अपने क्रोध प्रदर्शन का ज़रिया परोक्ष में टामी को रख के बना लेता हूँ। एक क़िस्म से ये मेरा शॉक एब्ज़ार्बर भी है।

मेरे बीपी को नॉर्मल रखने में कई बार अहम भूमिका अदा कर चुका है।

दुबे जी को नये लोगों से मिलते-भिड़ते देख मैंने टामी को रिवर्स मोड़ में मुड़ने का इशारा किया जिसे उसने थोड़ी ना-नुकुर के बाद मान लिया।

लोगों को रास्ते भर मास्क लगाये देखकर, अपनी ज़ुबान में कायं-कू करता रहा। शायद वो अपनी बिरादरी में भी इसी मास्क-कल्पना को सोच कर एक्स्ट्रा गुर्राने के प्रयास में लग चुका था।

दीगर रईसों के कुत्ते बाक़ायदा आसपास टहल रहे थे। टामी के पास उनके लिए कोई औपचारिक ‘दुआ-सलाम’ टाइप भौंकने का कारण नहीं नज़र आ रहा था।

मेरे कुछ दिनों के रीपीटेड आब्ज़र्वेशन से, मुझे ये पुख़्ता होने लगा कि टामी अवसाद के लक्षणों से घिर गया है। उसे किसी वेटनरी डाक्टर की सख़्त ज़रूरत है...!

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल

सजल

नज़्म

कविता

गीत-नवगीत

दोहे

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता-मुक्तक

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं