बादल
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु मानोशी चैटर्जी3 May 2012
बरस गये
ये थोड़े से बादल
आज जी भर
कभी झरते
ये हल्के रिमझिम
कभी निर्झर
अधूरी गाथा
कहते छल से ये
चुप अधर
बात हमारी
पिया नहीं समझे
समझ कर
घन उमड़
आये घुमड़ कर
नैनों में फिर
बरस गये
तब काले बादल
आज जी भर।
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