बादलों के बीच
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत बृज राज किशोर 'राहगीर'25 Jun 2017
बादलों के बीच
बनते और मिटते हैं
नज़ारे।
कोई अगोचर
चित्र रचती है अनोखे
और आँखें देखती हैं
खोलकर
मन के झरोखे
भाव के अनुरूप
ढलते जा रहे हैं
रूप सारे।
एक बादल ही कहें क्या
सभी कुछ
तुमने रचा है
तुम्हीं हो व्यापक चराचर
क्या भला
तुमसे बचा है
किस तरह तारीफ़ में
तेरी कहें कुछ
सृजनहारे।
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