बाल-पहेलियाँ
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता रमेशराज1 Jun 2019
1.
अंगारों से खेलता रोज़ सवेरे-शाम
हुक्का भरने का करूँ दादाजी का काम
सेंकता रोज़ चपाती, मैं दादा का नाती।
2.
सब्जी चावल रायता, मुझसे परसो दाल
मेरे सदगुण देखकर होते सभी निहाल
दावतों में मैं जाता, सभी को खीर खिलाता।
3.
पूड़ी कुल्चे रोटियाँ बना रहा अविराम
‘मौसी’ ले लेती मगर एक और भी काम
दिखा मेरी बॉडी को, डराती मौसा जी को।
4.
मेरे सीने में भरी देखो ऐसी आग
तनिक गए गर चूक तो जले पराँठा-साग
तवा मेरी शोभा है, लँगोटा यार रहा है।
5.
पल-पल जलकर मैं हुई अंगारों से राख
दे देती कुछ रोशनी मैं अँधियारे पाख
भले मैं खुद जल जाती, भोजन सदा पकाती।
6.
आलू मटर उबालता और पकाता दाल
आग जलाती जब मुझे आ जाता भूचाल
गधे की तरह रेंकता, तेज मैं भाप फेंकता।
-----------------------------------------------------
1. चिमटा; 2. चमचा; 3. बेलन; 4. चूल्हा; 5. लकड़ी; 6. कुकर
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
बाल साहित्य कविता
कविता
साहित्यिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं