बाँग और आरती
अनूदित साहित्य | अनूदित कविता डॉ. दत्ता कोल्हारे ’रत्नाकर’6 Sep 2016
मूल कवि : उत्तम कांबळे
डॉ. कोल्हारे दत्ता रत्नाकर
बाँग, घंटानाद और आरती सुनकर
पहले मनुष्य जाग जाता था
आज दंगा हो जाता है
और प्रार्थना स्थलों को ही
रक्तस्नान कराता है
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