बारिश
काव्य साहित्य | कविता हरदीप बिरदी13 Apr 2017
देखो ना बारिश हो रही है,
पर इक तेरी कमी है।
हवा है भीनी भीनी सी,
पर मेरे लिए ये थमी है।
लोगों के लिए है ख़ुशी ये,
सब के चेहरे पर रौनक़,
मुझे देख हैं हैरान सब,
इसको न जाने क्या ग़मी है।
सब हो गया है नया सा,
पानी ने साफ़ कर दी धूल,
मेरा ही नहीं हुआ उद्धार,
यादों की जो धूल जमी है।
रम गया है पानी ज़मीं में,
प्यास बुझी धरती की,
सूखे मन पे न असर हुआ,
तेरी याद जो रमी है।
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