बारिश के कुछ रंग
काव्य साहित्य | कविता अनुपमा रस्तोगी15 Aug 2019
नाचते हुए मोर
झूमते चहकते चकोर।
घुमड़ते काले बादल
चमकती गरजती बिजली।
मेंढक की टर्र टर्र
मौसम ख़राब होने की ख़बर।
बरसता हुआ सावन
प्यासा तरसता मन।
बारिश में भीगना
पुरानी यादों को सींचना।
बूँदों की टिप टिप
वोह चाय का सिप,
आलू प्याज़ के पकौड़े
मन कैसे इन्हें छोड़े।
कागज़ की नाव
ठहरा हुआ पानी,
फिसलते रपटते बच्चे
न सूखते सीले कपडे।
काले और रंगबिरंगे छाते
रेनकोट, बरसाती और जूते।
सड़क के गड्डे
वही पुराने क़िस्से।
न ख़तम होने वाला ट्रैफ़िक जाम
सड़क पर गुज़रती शाम।
देर से घर पहुँचना
भीग जाना और छींकना।
क़हर ढाती
उफनती हुई नदी
बाढ़ का डर
सैंकड़ों उजड़े घर।
बेघर हुए लोग
बीमारी और फैलते रोग।
नीला-नीला आसमान
धुला घर आँगन।
हरी हरी पत्तियाँ
नयी आशा उम्मीद जगाती।
सोंधी मिट्टी की महक
जीवन में घोलती चहक।
बारिश के अनगिनत रंग
मदमस्त, चंचल और मलंग
मौसम का यह क्रम
सब कुछ स्थायी है, तोड़ता यह भ्रम
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}