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बारिश की फुहार 

रात के सघन अँधेरे में
साफ़ सुनायी पड़ती 
बारिश की बूँदों की आवाज़। 
कभी मध्यम, कभी तीव्र 
कभी शिथिल, पर अविराम
आकाश को प्रकाशित करती 
गड़गड़ाहट की आवाज़ 
अनवरत, लगातार। 
 
खिड़की के पल्लों पर
टिपटिपाती बूँदें
सड़क पर पानी के 
अनेकों गड्ढे, बजबजाते नाले.
चहुँ ओर कीचड़
हरे भरे धुले गाछ, वृक्ष.
सबकुछ निर्मल बनाती
बारिश की फुहार। 
 
वो सड़क के कोने पर 
सोते भिक्षु को जाने क्यूँ 
नहीं भाती ये बारिश हर बार 
उसका छोटा सा आशियाना 
डूब जाता है जब भी 
हो आती है बरसात। 
बुदबुदाता, कोसता 
हर क्षण ऊपर वाले का 
कैसा पक्षपात?

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