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बच्चो! पहला प्रयास स्वास्थ्य पर ध्यान

बच्चो! कहा गया है, स्वस्थ तन में स्वस्थ मन का निवास होता है, इसे यूँ भी कह सकते हैं, यदि स्वस्थ रहेंगे तो हमारी बुद्धि भी तेज़ होगी, अच्छी होगी। बुज़ुर्गों ने संसार के सभी सुखों में, "पहला सुख निरोगी काया" बतलाया है।

इसीलिए सभी को यह प्रयास करते रहना चाहिए कि वह सदैव स्वस्थ रहें यानी कभी बीमार न पड़ें। 

बच्चो! परंतु इसमें डरने और घबराने जैसे कोई बात नहीं है, न ही दुःखी या चिंतित होने की ज़रूरत। बस, सदैव सजग और सावधान रहने की आवश्यकता है। क्या खा रहे हो? क्या पी रहे हो? इस पर ध्यान रखना है। इन सबमें एक बात जो बहुत महत्वपूर्ण है वह है साफ़-सफ़ाई और शुद्धता। 

हमेशा साफ़-सुथरे रहने की कोशिश करो। प्रातः उठो तो अच्छे से मुँह धोओ, दाँत और जीभ साफ़ करो। रोज़ नहाओ। साफ़ कपड़े पहनो। नाखून बढ़ने मत दो। उनमें मैल जमा हो जाती है, वह बहुत नुक़सानदायक होता है। नाक, कान में उँगली मत डालो। ज़रूरत पर रूमाल का उपयोग करो। खाने के पहले हाथ अवश्य धोओ। संभव हो तो साबुन से हाथ धोना चाहिए।

पानी पीते समय गिलास में उँगली न डालें। 

जहाँ बैठते हो, पढ़ते हो, खाना खाते हो, सोते हो, सभी स्थान साफ़ रखो। घर को साफ़ रखो और साफ़ रखने में परिवार के सदस्यों की मदद करो भी, मदद लो भी। 

शरीर को फ़ुर्तीला रखने की कोशिश करो। इसके लिए अधिक से अधिक पैदल या साईकिल का उपयोग करो। ध्यान से पढ़ाई भी करो और कुछ देर के लिए खेलो-कूदो भी। यह व्यायाम की श्रेणी में भी आता है। नियमित दिनचर्या रखने की कोशिश करो। बार-बार कुछ भी खाते रहने से परहेज़ करो। मुँह साफ़ रखो। इससे अनावश्यक थूकने की बुरी आदत से बचे रहोगे।

कहीं भी गंदगी मत फैलाओ। कचरे को कचरे पेटी में डालने की आदत बनाओ। 

साफ़-सुथरी जगह और साफ़-सफ़ाई से रहने से तन-मन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। मन प्रसन्न रहता है। अच्छे विचार आते हैं। यही वातावरण तो शरीर को स्वस्थ बनाने में सहायक होता है।

इसीलिए तो कहा और समझाया जाता है कि बाज़ार की चीज़ें मत खाओ। क्योंकि वहाँ की चीज़ें साफ़-सफ़ाई से बनायीं गयीं हैं या नहीं, उनका रख-रखाव साफ़-सुथरे तरीक़े से किया जा रहा है कि नहीं? उनमें उपयोग किया गया सामान शुद्ध एवं अच्छी गुणवत्ता व सही मानक का, है कि नहीं? इस संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

अतः ये चीज़ें खाने-पीने में भले ही हमें अच्छी लगें परंतु हमारे शरीर को यानी हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकती हैं। इस बात का हमें ध्यान में रखना ही होगा।

हमारा पेट भोला-भाला और गूँगा होता है, वह आपको कभी कोई चीज़ खाने को रोकता नहीं है। आप जो खायेंगे, पियेंगे वह ग्रहण कर लेगा, इसमें फ़ायदा होगा या नुक़सान इसके बारे में आप ही ज़िम्मेदार होंगे, आपको ही सोचना होगा और आप को ही स्वीकार या अस्वीकार करना होगा।

अतः जो भी खाओ-पियो सोच-समझकर खाओ-पियो। 

खाने-पीने के पहले मनन करो कि ये पेट में जाकर कहीं हमारी पाचन शक्ति को ख़राब तो नहीं करेगा? 

कुछ चीज़ें ऐसी भी होती हैं जो हमारे दाँत, जीभ, गला, गाल, आँत, फेफड़े, हृदय, गुर्दे आदि पर भी बहुत बुरा असर डालतीं हैं। विशेषकर ये पान, गुटखा, धूम्रपान की वस्तुएँ। ये बहुत बुरी चीज़ें होती हैं, इनसे हमेशा दूर ही रहें। कभी भी किसी के बहकावे में न आवें। न ही किसी को देखकर प्रभावित हों।

कभी भी गंदी, बासी, कटे-फटे फल, खुले या अँधेरे में रखी चीज़ों को खाने के उपयोग में न लेवें। 

रूमाल, तौलिया, चादर साफ़ रखें और साफ़ वाला ही उपयोग में लावें। 

टूथ-ब्रश, जिभी, तौलिया, रूमाल स्वयं का अलग रखें और उसी का उपयोग करें। कभी भी किसी अन्य के द्वारा उपयोग की गयीं वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए।

खाने-पीने, बैठने-उठने, सोने-जागने में साफ़-सफ़ाई के बाद नंबर आता है, अच्छी पढ़ाई-लिखाई का, अच्छे विचारों का, अच्छी सोच का। इसीलिए सदैव अच्छी बातें सोचो। बुरे विचार, किसी को नुक़सान पहुँचाने के बारे में, क्रोध, चिंता, भय मन में न लाओ। कभी ऐसी कोई बात आवे, मन में या तन में कोई तक़लीफ़ हो तो अपने माता-पिता, भाई-बहन, मित्र, शिक्षक जो भी हों उन्हें बेझिझक बताकर उसका निदान करने का प्रयास करो। कभी भी संकोच, भय या शर्म नहीं करो। छुपाने से तक़लीफ़ और बढ़ती है, कम नहीं होती।

अंत में फिर दोहराता हूँ, स्वास्थ्य का ध्यान रखें, सावधानी रखें, स्वच्छता का ख़याल रखें।

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