अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

बच्चों के लिये लेखन

वर्तमान में यह सुखद और शुभ संकेत है कि बच्चों के लिये ख़ूब और ख़ूबसूरती से न केवल लिखा जा रहा है बल्कि उनसे संबंधित हर विषय को लेकर कुछ न कुछ रोचक, ज्ञानवर्धक और मनोरंजक साहित्य उपलब्ध कराया जा रहा है। यह एक पहलू है।

दूसरा पहलू यह है कि हमें अपने लेखन में मनोवैज्ञानिक रूप से भी सजग रहना आवश्यक है कि हम जो बच्चों को रचना देने जा रहे हैं वह उनके मन-मस्तिष्क और दिल को कितना सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी?

हमें इसके लिये न केवल सजग रहना होगा बल्कि गंभीर भी बनना होगा। हमें उदारवादी, संकोची स्वभाव से बचते हुये धैर्य और दृढ़ता का पक्ष मज़बूत करना होगा। ऐसा करना हमारे लेखन के लिये बहुत ही अहम है। हमारे लेखन में हमें विषय-भाव प्रस्तुति के लिये शब्द चयन का भी ध्यान रखना है। आजकल बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त शब्दों को रचना में सीधे-सीधे उपयोग में लिया जा रहा है, यह न ठीक है, न उचित। हम भी वही करने लगेंगे तो फिर सही कौन करेगा?

  • हमें हिंदी की रचनाओं में विशेष तौर से पद्य में अँग्रज़ी शब्दों के उपयोग से बचना चाहिये। 
  • शब्द और व्याकरण की अशुद्धियाँ न हों,यह भी ध्यान रखना है।
  • पद्य की रचनाओं में तुक को प्राथमिकता देना आवश्यक है। इससे बच्चों को पढ़ने, सीखने और याद करने में कठिनाई नहीं होती। 
  • रचना जिस उम्र तक के बच्चों को लिखी जा रही है,शब्द चयन में हमें ध्यान रखना होगा। अत्यंत कठिन शब्द उपयोग में न लिये जाएँ।   
  • रचना लिखने के बाद विमर्श को भी स्थान मिलना चाहिये। साहित्य में रुचि रखने वाले और सहजता से उपलब्ध हमारे घनिष्ठों से, लिखी गई रचना के संबंध में उनसे विमर्श कर सुझाव लेने में कोई हर्ज़ नहीं होना चाहिये।
  • फिर इसी रचना को, परिवार के बच्चों से पढ़वाकर उनकी प्रतिक्रिया समझने का भी प्रयास कर, यदि रचना में सुधार की आवश्यकता नज़र आये तो वांछित सुधार कर लेना चाहिये। ऐसा करने से हमारी रचना हमारे उद्देश्य को सफल और सार्थक करने में खरी उतरेगी।
  • हमने कितना लिखा? उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है हमने कितना अच्छा ... सार्थक लिखा।

अस्तु - आज पटल पर बात रखने का अवसर मिला तो प्रयास और साहस किया है। कमियाँ और असहमति हो सकती हैं। क्षमा करें।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

लघुकथा

गीत-नवगीत

बाल साहित्य कविता

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

किशोर साहित्य कविता

कविता - हाइकु

किशोर साहित्य आलेख

बाल साहित्य आलेख

काम की बात

किशोर साहित्य लघुकथा

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं