बदल गई है लय जीवन की...
शायरी | ग़ज़ल देवमणि पांडेय19 Dec 2014
(मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइलातुन मुफ़ाइ्लुन)
बदल गई है लय जीवन की सुर ग़ायब हैं ताल नहीं है
क्या-कुछ हमसे छूट गया है इसका हमें ख़याल नहीं है
अपने ही जब ग़ैर हुए तो वो वृद्धाश्रम चले गए
ख़ुश है बेटा, बहू के सर पे अब कोई जंजाल नहीं है
दिनभर खटा धूप में लेकिन कुछ भी हाथ नहीं आया
क्या खाएँगे बच्चे आख़िर घर में आटा दाल नहीं है
क्या क्या नहीं दिया बचपन को इंटरनेट की दुनिया ने
बच्चों के अफ़सानों में अब वो बूढ़ा बेताल नहीं है
दौलत वालो! देखो आकर क्या हैं ठाठ फ़क़ीरों के
हर हालत में ख़ुश रहते हैं भले जेब में माल नहीं है
दिल की दूरी तय करना तो बेहद मुश्किल है लेकिन
मंज़िल पाकर क्यूँ लगता है इसमें कोई कमाल नहीं है
अच्छा दिखने की ख़्वाहिश तो हर इंसां में होती है
फिर भी जो बदनाम बहुत हैं कुछ भी उन्हें मलाल नहीं है
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
कविता
पुस्तक समीक्षा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं