बदलाव
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता बसंत आर्य21 May 2007
पहले वे
इन बेकार की बातों में
वक़्त ज़ाया करना
मूर्खता समझते थे,
परंतु
कुछ दिनों से
बिलकुल बदल गये हैं,
परसों वे
गाँधी की समाधि पर
डाल रहे थे क़ीमती इत्र
और कल
शहर के चौराहे पर
उन्होंने टँगवा दिया है
उनका एक विशाल चित्र
आज वे नेहरू की मूर्ति पर
फूल माला चढ़ायेंगे
और कल बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के
"दौड़े" पर जायेंगे,
सवाल उठता है
आख़िर क्यों?
वे गरीबों के लिए
इतना क्यों कर रहे हैं
तो सुना है इस साल वे
चुनाव लड़ रहे हैं
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