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बड़बोले नेता जी

गाँव में नया-नया सरकारी स्कूल खुला था, इसलिए नेताजी को उद्घाटन समारोह में बुलाया गया था।

पंडाल के चारों तरफ़ बहुत भीड़ थी। नेताजी एक ऊँचे से मंच से भाषण दे रहे थे कि अब हमारे क्षेत्र के सभी सरकारी विद्यालय किसी प्राइवेट कान्वेंट स्कूल से पीछे नहीं रहे, अब वो सारी सुख सुविधाएँ सरकारी स्कूल में भी उपलब्ध हैं, जो बड़े-बड़े कॉन्वेंट स्कूलों में होती हैं। अब हर ग़रीब घराने के बच्चों को भी वैसी ही शिक्षा मिलेगी जैसी अमीर घराने के बच्चों को मिलती है और वह भी मुफ़्त में!

तभी तालियों की ज़ोरदार गड़गड़ाहट हुई तो नेता जी ने कुछ देर के लिए अपनी वाणी को विराम दिया ।

और पुनः पानी पीकर नेता जी ने भाषण को जारी रखते हुए कहा , "मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन अमीर घराने के बच्चे भी सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए तरसेंगे।"

यह कहकर नेताजी ने अपना भाषण ख़त्म किया। भाषण ख़त्म होते ही भीड़ में बैठे लोगों ने उनका तालियों से अभिवादन किया।

उसके बाद नेताजी गाड़ी में बैठकर के घर जाने लगे कि तभी उनकी फोन की घंटी बजी। जैसे ही उन्होंने कॉल रिसीव किया तो फोन पर उनकी पत्नी ने कहा , "अरे, आपको बिल्कुल भी चिंता नहीं कि आज हम दोनों लोगों को अपने बेटे का एडमिशन शहर के बड़े से कान्वेंट स्कूल में कराने जाना है, नहीं तो फिर एडमिशन होने बंद हो जाएँगे।"

नेताजी ने प्रतिउत्तर में कहा, "अरे, हमें याद है हमने तो रुपयों का भी पूरा बंदोबस्त कर लिया, तुम फ़िक्र मत करो मेरा बेटा उसी स्कूल में पढ़ेगा।"

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