बड़े मज़े का गाँव जी
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'1 Mar 2019
सोनू-मोनू खेल रचाते,
बगिया की इक छाँव जी।
केला-अमरूद, सेब-संतरें,
लदे-भरे हर ठाँव जी॥1॥
चहुँ ओर है मनभावन,
रंग-बिरंगे फूल जी।
नदी किनारे गैया चरती,
सुधबुध अपनी भूल जी॥
आकर सुबह-शाम नित कौवा।
करता काँव-काँव जी॥2॥
झर-झर, झर-झर झरने झरते,
नदियाँ करतीं कल-कल जी।
हरे-भरे जहाँ पेड़ घनेरे,
खुशियाँ बाँटे हरपल जी॥
ऐसा सुंदर दृश्य देखकर।
थम-थम जाते पाँव जी॥3॥
भोले-भाले, सीधे-सादे,
अजब निराले लोग जी।
मीठे-मीठे फल चुन-चुनकर,
सदा लगाते भोग जी॥
छोटी-छोटी इनकी बस्ती।
बड़े मज़े का गाँव जी॥4॥
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