बग़ावत लिखूँ
काव्य साहित्य | कविता डॉ. भावना शर्मा1 Jun 2020
मैं ताउम्र बस इश्क़ लिखना चाहती हूँ,
पर अब दिल कह रहा है ब़गावत लिखूँ ।
कानों तक नहीं जो दिल तक जाये,
ऐसी कोई सरसराहट लिखूँ ।
अब रंग नहीं, तस्वीर नहीं,
ज़ंजीर लिखूँ, शमशीर लिखूँ ।
अब नींद नहीं, अब चैन नहीं,
अब ख़्वाब नहीं, ताबीर लिखूँ ।
अब दर्द नहीं, अब प्यार नहीं,
तलवार लिखूँ, अंगार लिखूँ ।
अब चुभन नहीं, अब रुदन नहीं,
विद्रोह का अब ग़ुबार लिखूँ ।
असहाय नहीं, बरबाद नहीं,
भारत माँ को आबाद लिखूँ ।
दुश्मन को अब माफ़ी नहीं,
अब रण का शंखनाद लिखूँ ।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}