बंधन दोस्ती का
काव्य साहित्य | कविता प्रवीण कुमार शर्मा1 Apr 2021
मुझे क्यूँ तड़पाता है?
ख़्वाब में भी दरवाज़ा
खटखटाता है –
याद बनकर।
मैं भूलने की
कोशिश करता हूँ,
बहुत हद तक
सफल भी हुआ हूँ
भुलाने में।
अब तुमने ख़्वाब में भी
आना शुरू कर दिया।
सुना है ख़्वाब तो ख़्वाब हैं
आते हैं चले जाते हैं
पर दर्द भी तो दे जाते हैं
हक़ीक़त में।
नफ़रत करते हैं हम
ऐसे दोस्ताने से,
देकर सच्ची दोस्ती का
वास्ता भी
जो ना निभा सके
'बंधन दोस्ती का'॥
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