बरखा रानी आई है
काव्य साहित्य | कविता महेन्द्र देवांगन माटी15 Jul 2020 (अंक: 160, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
(ताटंक छंद)
गड़गड़ गरजे आसमान से, घोर घटा भी छाई है।
छमछम करती हँसते गाती, बरखा रानी आई है॥
झूम उठी है धरती सारी, पौधे सब मुस्काये हैं ।
चहक उठी है चिड़िया रानी, भौंरा गाना गाये हैं॥
ठूँठ पड़े पेड़ों में भी तो, हरियाली अब छाई है।
छमछम करती हँसते गाती, बरखा रानी आई है॥
लगे छलकने ताल तलैया , पोखर सब भर आये हैं ।
कलकल करती नदियाँ बहती, झरने गीत सुनाये हैं ॥
चमक चमक कर बिजली रानी, नया संदेशा लाई है।
छमछम करती हँसते गाती, बरखा रानी आई है॥
ख़ुशी किसानों की मत पूछो, अब तो फ़सल उगानी है।
नये तरीक़ों से खेतों में, नई क्रांति अब लानी है॥
माटी की है महक निराली, फ़सलें भी लहराई हैं।
छमछम करती हँसते गाती, बरखा रानी आई है॥
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