बरसती बारिशों की धुन पे लम्हें गुनगुनाते हैं
शायरी | नज़्म मधुप मोहता24 Jan 2009
बरसती बारिशों की धुन पे लम्हें गुनगुनाते हैं
वो बरबस याद आते हैं, बरस यूँ बीत जाते हैं
किसी गुमनाम बस्ती के किसी अनजान रस्ते पर
मिला वो अजनबी, तो क्यूँ लगा, जन्मों के नाते हैं
कहानी की किताबों में न ढूँढो प्यार का मतलब
ये इक सैलाब है, इसमें किनारे डूब जाते हैं
नई तह्ज़ीब है, बाज़ार खुलने पे ये तय होगा
किसे वो भूल जाते हैं, किसे अपना बनाते हैं
मुहब्बत एक धोखा है, उसे अब कौन समझाए
न क़समें हैं न वादे हैं, न रिश्ते हैं, न नाते हैं
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