बरसात की एक शाम
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कीर्ति श्रीवास्तव15 Jun 2020
बरसात के भीगे मौसम में
ढलती हुई एक शाम में
आओ बैठो साथ में
कुछ बात करते हैं
कुछ कहते हैं, कुछ सुनते हैं
कुछ अपनी और कुछ अपनों की
यूँ तो हर आदमी मशग़ूल है
अपनी ज़िंदगी की जुगत में
पर कुछ पल अपनों का साथ
एक सुकून सा दे जाता है
वो तमाम बातें जिन्हें हम नज़रंदाज़ कर देते हैं
ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर हमे अक़्सर
वहीं बातें नज़र आ जाती हैं
वहीं बातें फिर दिल को दर्द दे जाती हैं
कहने सुनने का सिलसिला शुरू हुआ
तो भी कुछ अनकही बातों से मानो
वक़्त कुछ देर थम सा गया हो
फिर भी वो बात कही नहीं जाती
जो बरसों से दिल में दबी दबी सी है
हर बात कहने और सुनने का
अपना ही नज़रिया होता है
जो बात हम कह नहीं पाते
वो भी आप समझ जाते हैं
चलो बैठ कर कहीं हम इस
सुहाने मौसम का लुत्फ़ उठाते हैं
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