बरसात
काव्य साहित्य | दोहे डॉ. शोभा श्रीवास्तव1 Aug 2021 (अंक: 186, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
१.
कागा उड़ जा तू कहीं,
अंगना में मत डोल।
पिय बिन बेकल हिय रहे,
बरखा का क्या मोल॥
२.
हौले-हौले से बरस,
ओ बैरन बरसात।
पिय आवन की आस है,
काहे अगन लगात॥
३.
बदरा बच-बच चालियो,
बरखा लियो थिराय।
नार-नवेली लजवंती,
बिजुरी देख डराए॥
४.
झूमे धरती देखकर,
श्याम घटा घनघोर ।
कांधों पर हल सज गये ,
मन में उठे हिलोर॥
५.
गरज- गरज कर झूम कर,
बरस रही बरसात।
भींग रहा मन-बावरा,
लजारहे हैं गात॥
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टिप्पणियाँ
पाण्डेय सरिता 2021/07/28 09:53 PM
बहुत बढ़िया
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डॉ पदमावती 2021/07/28 11:15 PM
वाह बरसात का आनंद आ गया । बहुत सुंदर । बधाई